Monday, February 4, 2013

!!!...गुटरगूं... गुटरगूं...!!!



मेरे शयनकक्ष के बाहर
एसी की छत पर,
हर रोज आकर गाता
गुटरगूं ... गुटरगूं ...

वो सफेद पंख वाला
कबूतर का जोड़ा

जैसे नर कह रहा हो
अपनी प्रिया से...
पास मेरे आओ ना,
मुझसे चोंच लड़ाओ ना
गुटरगूं... गुटरगूं...

वो मिलन गीत सुनाता 
कबूतर का जोड़ा

थक गया हूँ मैं,,
ज़रा पंख मेरे सहलाओ ना
थकान दूर भगाओ ना
गुटरगूं... गुटरगूं...

वो प्रणय गीत गाता,
कबूतर का जोड़ा

ऋतुराज के आते ही
फूलों सा मुस्कुराता
हर दिल में बस जाता
गुटरगूं... गुटरगूं...

वो मदमस्त गुनगुनाता
कबूतर का जोड़ा

शांति का प्रतीक
हर दिल अज़ीज
बिन बोले सब कह जाता
गुटरगूं... गुटरगूं...

वो प्रेम भाषा समझाता
कबूतर का जोड़ा

प्रेमी युगल के जैसे
मिलने को जैसे आतुर
ऐसे गले लग जाता
गुटरगूं... गुटरगूं...

वो  श्वेत पंख फैलाता
कबूतर का जोड़ा
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18 comments :

  1. सुन्दर
    अति सुन्दर

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  2. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  3. कोमल भावों से सजी सुन्दर प्रस्तुति!

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  4. Aapne to laajabaab kar diya sarita ji...wakai behtareen rachna ...khuda fehfuj rakhe har balaa se..

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  5. खूबसूरत प्रेमगीत

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  6. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  7. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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  8. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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