सभी दोस्तों का शुक्रिया, ऋतुराज बसंत की रचना
''यह तो मौसम का जादू है मितवा''पसंद करने के लिए!
यह तो 'वेलिंटाइन डे' के बारे में बताने की कोशिश की ,जो अपने
ऋतुराज बसंत से कुछ अलग नहीं है ,यह तो एक वर्ष पहले पश्चिम
से आया है हमारीतो सदियों से यह परंपरा रही है ,पुष्पों के खिलने
पर हर मन उत्साहित होता है,श्रृंगार रस के कवियों ने सबसे अधिक
बसंत ऋतु पर ही कविताएँ लिखी हैं,और अपने संगीत में इन पुष्पों
का बहुत महत्व है ,वैसे तो मेरा मानना है कि प्यार के इज़हार के
लिए कोई मौसम की ,दिन की बंदिश नहीं है,यह तो एक सुखद अनुभूति
है जिसका कोई समय तय नहीं है,इसी को प्रस्तुत करती मेरी छोटी सी
भेंट दोस्तों के नाम........
प्यार को प्यार ही रहने दो .............
मेरा प्यार मोहताज नहीं उन तिथियों का
जो 'रोज़ डे' को गुलाब देने से
'टेडी डे' पर टेडी देने से याद आए
जिसके लिए एक ख़ास दिन
'वेलिंटाइन डे' मुकर्र किया जाए,
यह तो है एक निच्छल,अविरल,अहसास
जो बाँधे है मुझे निरंतर
जीवन की डोर से
जो दे जाता है एक विश्वसनीय आस
यह तो है इक सुखद अनुभूति
जिसका नहीं है जवाब
कब? कहाँ ?कैसे हो जाए?
नहीं कोई इसका हिसाब
रोज़ डे पर रोज़,चाकलेट डे पर चाकलेट
टेडी डे पर टेडी नहीं है मुझे स्वीकार
कोई अपना जो करे मेरी चिन्ता
यही है मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार
या यूँ कहिए
ना दो चाकलेट,टेडी या रोज़
करती हूँ मैं इसे अपोज़
कोई मेरे लिए करे क़ेयर
जो करे सब मुझसे शेयर
वोह है मेरे सबसे नियर
वोही है मुझे सबसे डियर