Thursday, July 11, 2013

प्रलय या आपदा [आल्हा छंद ]



रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार 
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार 
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार 

उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई रात  
कुदरत हुई खून की प्यासी, प्रलय मचा है चारों ओर
कुपित शिवा जलमग्न हो गए,आया है कलयुग घनघोर 
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