Tuesday, July 2, 2013
दोहे [बरखा]
जल बिन सब बेजान हैं ,धरती कहे पुकार
बरखा देखो आ गई ,लेकर सुखद फुहार
घाव धरा के भर गए , ग्रीष्म हो गया लुप्त
जल फैला चहुँ ओर है ,धरा हो गई तृप्त
बरखा ले कर आ गई , राहत और सुकून
दिल्ली भी अब बन गई ,देख देहरादून
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