Friday, July 19, 2013

कुदरत

खेला करती थी कुदरत

यहाँ खुले मैदान में

इंटों के जंगल खड़े हैं

आज उसी मैदान में

बस कुछ लालच की खातिर

कर दी उसकी शांति भंग

आलिशान मकान तो हैं

दिल में है कितना दंभ

खेल कुछ ऐसा रचा कि

मैदान वापिस पा लिया

जो कुछ भी था तेरा

तुझको है लौटा दिया


समझ जा ओ मूर्ख बन्दे

सुधार ले अपने ढंग

मत कर दोहन उसका

रुक जा ओ इन्सान

कुदरत खेलेगी फिर लीला

कर देगी सब श्मशान

उसका उसको लौटा दे

वृक्षारोपण कर हरियाली ला

छोड़ दे झूठे लालच बन्दे

अपने जीवन में खुशहाली ला
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