Sunday, September 1, 2013

काहे को दुनिया बनाई

काहे बनाए तूने माटी के पुतले 
धरती यह प्यारी मुखड़े यह उजले 

तू भी तो तड़पा होगा मन को बनाकर 
तूफान यह प्यार का मन में जगाकर 
कोई छवि तो होगी आँखों में तेरी 
आंसूं भी छलके होंगे पलकों से तेरी 

बोल क्या सूझी तुझको काहे को प्रीत जगाई 
सपने जगाके तूने काहे को देदी जुदाई 



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