Thursday, October 17, 2013

मैं और मेरी तन्हाई

मैं और मेरी तन्हाई
अक्सर ढूँढते हैं
उस अक्स को
जिसमें
वजूद मेरा खो गया
मुझे अपने में समेटकर
शायद
वो भी तन्हा हो गया

दुनिया के मेले में
लोगों के रेले में
मुझे छोड़ अकेले में
रहेगा वो झमेले में

तब
समझेगा वो तन्हाई को
रिश्ते की गहराई को
फिर ढूंढेगा मेरी परछाई को

क्योंकि
जो बिन बाँधे जुड़ जाते हैं
वो रिश्ते खास कहलाते हैं
इसीलिए जाए आजमाते हैं
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