Sunday, November 10, 2013

हुआ है आज अँधेरा बुझी बसी बस्ती

हमें न रोक सकी है करीब आने से 
ये दुनिया साजिशें रचती रही ज़माने से /

कई है जिंदगियां मिटने को चले आओ 
खुलेगी आज ये किस्मत तो तेरे आने से /

मिटा गरीब का है आशियाँ सदा के लिए 
बना है मॉल सभी बस्तियां हटाने से /

हुआ है आज अँधेरा बुझी बसी बस्ती
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से / 

बसा दो सरिता अगर तो दुआएं मिलें  
हटा दो आज अँधेरा दिया जलाने से //

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