Tuesday, July 29, 2014

तरही गजल

नश्वर है जिंदगानी खजाना तो है नहीं 
इसको यूँ दाग यार लगाना तो है नहीं |

आई हूँ इस सराय मुसाफिर हूँ दोस्तो 
अपना भी इस जहां में ठिकाना तो है नहीं |

यूँ प्यार से तो माँग लो जान भी मगर
गुस्सा हमें तू यार दिखाना तो है नहीं |

आशिक नही जहान में सच्चा कहें जिसे 
कैसे कहें ह्रदय उसे जाना तो है नहीं |

वादा किया था उसने न छोड़ेंगे साथ हम
थामा है गैर हाथ बताना तो है नहीं |

बस बांटना है प्यार हमें कुल जहान में 
अपना भी कोई ख़ास निशाना तो है नहीं |

हर रोज हैं इमारतें बनती यहाँ वहाँ 
उजड़ा जो आशियाना बनाना तो है नहीं |

भाषण हुए हैं खास कुपोषण के नाम पे  
घर में गरीब के पका खाना तो है नहीं |
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