Tuesday, June 23, 2015

पगली


                                                                  


ख़ुशी से 
बावरी हो गई थी
वो 
भाग रही थी
उड़ते ख़्वाबों के पीछे 
बुने थे जो उसने ख्यालों में 
टिक नहीं रहे थे 
पाँव जमीं पर 
मिलन जो होने जा रहा था 
उसके ख्वाबों का 
यथार्थ के साथ 
इसीलिये बुलाता था
उसको वो 
" पगली "
सचमुच पागल हो गई थी
जब उसने देखा था 
ख्वाबों का 
विश्वास का 
अहसासों का
वादों का
टूटकर बिखर जाना 
किसी ख़ास अपने द्वारा
जो उसकी जिंदगी बन बैठा था 
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वादे तो किए ही जाते हैं तोड़ने के लिये

Sunday, June 21, 2015

प्यार [ दोहे]

बारी बारी सब गए ,छोड़ राह में हाथ 
अच्छे होना कर गया ,बुरा हमारे साथ ||

दर्द पीर आँसू मिले ,लुटा सभी सुख चैन  
रोते रोते दिन गया  ,रोते बीती रैन ||

प्यार मोह धोखा सभी ,वादे सभी असत्य 
कहो किसी की बात को ,मानें कैसे सत्य||
बार बार यह जिंदगी ,करती खड़े बवाल 
हल होंगे ये कब पता ,उलझे हुए सवाल  ||

छोड़ शराफत दी अगर, हमने इक दिन यार 
भूलेंगे ना भूलकर ,किया कभी था प्यार ||
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योग दोहावली

योग दिवस है आज से , करो आप भी योग | 
नित्य नियम से अब करो ,रहना अगर निरोग ||
योग रचा इतिहास है ,पहुँचा योग विदेश |
गली गली हर प्रान्त में  ,दिया योग सन्देश ||
योग दिवस ने आज फिर, किया देश का नाम 
तन मन को निर्मल करे, देता है आराम ||
सब आसन के साथ नित ,करना प्राणायाम 
शुद्ध करे यह श्वास को , करता अद्भुत काम ||
उच्चारण कर ओम का, धीरे से लो श्वास 
धीरे से फिर छोड़ कर ,करना आसन ख़ास ||
खुद को दो थोड़ा समय, निपटाओ निज काम
योगासन तब कीजिये ,सुबह रहे या शाम  ||
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Monday, June 15, 2015

गर्मी की छुट्टी [कुण्डलिया]

नाना नानी पूछते, बेटी कैसे बाल | 
गर्मी की छुट्टी हुई ,पहुँच गए ननिहाल ||
पहुँच गए ननिहाल ,रहे नाती या नाता
सभी किताबें छोड़ ,खेल कूद सदा भाता 
मामा मामी देख ,करें वो आनाकानी 
बच्चों पर सब वार, हुए खुश नाना नानी ।।

गर्मी की छुट्टी हुई , बच्चे हुए निहाल 
बच्चे औ' माता पिता ,खुश रहते हर हाल ।
खुश रहते हर हाल ,लगे गाली भी प्यारी
बचपन की मुस्कान ,सभी को लगती न्यारी 
सबसे मिलते रोज ,नहीं करें कभी कुट्टी
चले घूमने देश ,हुई गर्मी की छुट्टी ।।

गरमी की छुट्टी  मिली ,जाना कहाँ सवाल
बच्चे औ' माता पिता , पहुँचे नैनीताल ।
पहुँचे नैनीताल ,वहाँ का मौसम ठंडा 
कुछ दिन का आराम ,समझ ना आये फंडा 
उठी घटा घनघोर ,हुई पारे में नरमी 
लौटे अपने गेह ,वही  है फिर से गरमी ।।
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Sunday, June 14, 2015

पिता [दोहावली]

अगर  लुटाया मात ने ,हद से ज्यादा प्यार  
पिता सदा चुपचाप ही ,करते रहे  दुलार ||
अर्थ सिखाया आपने ,तुतलाते थे बोल
सीखा हमने आपसे ,अच्छाई का मोल ||


बैठ कंधे पर तात के ,देखा सब संसार 
समझा उनकी सीख से ,सब जग का व्यवहार ||  
चलना सीखा आपसे ,उँगली पकड़े तात 
जीता सारा ही जगत ,दी असत्य को मात ||
अन्दर से वो हैं नरम, ऊपर से कठोर
देख पिता को सामने ,नाचे मन का मोर ||
माँ के माथे की बिंदिया, माँ का वो विश्वास
साथ निभाया आपने ,दिया सबल अहसास ||
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