Thursday, January 7, 2016

छल, कपट [दोहे]


फितरत में जिनकी कपट, छलते हैं हर रोज ।
चाहे गंगाराम हो, चाहे राजा भोज।|

गद्दारी है खून में, नियत सदा  नापाक ।
गले मिला घोंपी छुरी,देश पड़ोसी पाक।।


जयचंदों ने जब छला ,बेच दिया ईमान।
मातृभूमि पर मिट गए, मेरे वीर जवान ।।

ओढ़ तिरंगे का कफ़न,चले गए ये लाल।
कंगन,पायल, मेंहदी ,रोते करें सवाल।।

शान तिरंगे की लिए, खोये हमने वीर।
कहे मेंहदी हाथ में,दे दो अब शमशीर।।

सुता एक जवान की ,पूछे आज सवाल।
फौजी अपने देश का, क्यों हो सदा हलाल?

कर्ज उतारा देश का,देकर अपना खून
नमन करो औ' सीख लो ,मरने का जूनून ।।

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