महाकुंभ का देखो कैसा मेला
इलाहाबाद में दुनिया का रेला
कुंभ में संस्कृति की झलक देखो
थम जाएँ साँसें जो अपल्क देखो
हो कोई पूर्ववासी या पश्चिम से आया
संगम में जाकर सबने डुबकी लगाया
बढ़ी अद्भुत है यह अखाड़ों की दुनिया
अटल है यह अपने संस्कारों की दुनिया
कोई वस्त्र त्यागे,कोई नाख़ून बढ़ाए
कैसे कैसे बैठे हैं ये रूप अपनाए
शिव की जटाओं से गंगा जैसे बहती
इनकी जटाएँ क्या क्या कहानी कहती
इतने बढ़ जाएँ पाप जब धरती बोझिल हो जाए
पूरी धरती एक दिन कहीं ना गंगा में समा जाए
''महाकुंभ'' का मेला हर साल आना चाहिए
ऐसे ही सही धरती का बोझ तो हटाना चाहिए