शायद ,मैं फेल हो गई
जिंदगी के हर इम्तिहान में,
कभी कभी यह सोचकर ,
मन बहुत विचलित हुआ
क्योंकि एक शिक्षित,जागरूक महिला
होने के बावजूद, हरेक को
मैं अपने अनुरूप नही ढाल पाई,
जैसे एक घरेलू,अशिक्षित महिला ने कर दिखाया
मैं किसी अपने पर हुकुम तो नही चला पाई
पर मुझे खुशी है कि
मैं अपने को उनके अनरूप ढाल पाई
मैने तय किया,
हर गम का ,खुशी का सफ़र
उन सब अपनों के साथ
लिए हाथों में अपनों का हाथ
कभी बेटी,कभी बहन,
कभी पत्नी,कभी माँ,
कभी एक दोस्त बनकर,
कभी पास,कभी दूर रहकर
फिर क्या फ़र्क पड़ता है अगर
मैं किसी के लिए फेल हो गई
मेरी आत्मा को संतुष्टि है कि
मैने जो भी करने की कोशिश की
उसमें मैंने खुद को 'पास' पाया,
शायद मुझे नही फ़र्क पड़ता
किसी के भी फ़ैसले से बिल्कुल वैसे ही
जैसे किसी की नज़र में तुम लाख गिर जाओ
पर अपनी नज़र में कभी मत गिरो
इसलिए मैं अपने को 'पास' हुआ मानती हूँ
फिर क्यों कहूँ?
मैं कि शायद मैं फेल हो गई!
क्योंकि मैं 'मैं' हूँ..........नारी