Friday, February 7, 2014

मन [ कुण्डलिया ]

मन के जीते जीत है ,मन के हारे हार 
मन को समझा ना अगर जीना हो दुश्वार/
जीना हो दुश्वार अगर मन दुख से भारी
सुख से पल संवार, कर के मन संग यारी
मन से कर लो प्रीत ,छोड़ो मोह अब तन के 
मन की ना हो हार ,प्यार के फेरो मनके//    
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