Thursday, January 22, 2015

क्षणिका 1

1.
बढ़ रही हैं आशाएँ 
अनजानी 
पहचानी 
रूहानी 
ग्लोबल वार्मिंग की मानिंद 
सिमट रही हैं खुशियाँ 
तेरी 
मेरी 
अपनों की 
ग्लेशियर की मानिंद
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