Tuesday, May 19, 2015

उड़ान

जब जब हुई तैयार 
उड़ान भरने को 
बाँधी गई 
सामाजिक बंधनों में कभी 
रिश्तों के ताने बाने में कभी 
चढ़ाई गई अरमानों की बलि 
काट डाले इस समाज ने पर 
दे कर एक अजीब कशमकश 
खड़े कर कुछ अनसुलझे सवाल 
दे गया कोई चुनौती 
फिर से 
स्वछन्द विचरती 
निश्चल बहती 
सरिता के अस्तित्व को 
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