Saturday, May 30, 2015

दुल्हन

कितनी ख़ुशी है 
इस पगली को 
प्रीतम की आगोश पाने की 
जिससे बंध जाएगी वो 
जमाने भर की 
बंदिशों से 
रीतिरिवाजों से 
जिम्मेदारियों से 
खोकर 
ख्वाहिशों की बुलंदियाँ 
स्वछन्द विचरण 
माँ का सुखमय शीतल आँचल 
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यह सच्चा सौदा है क्या ?
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Sunday, May 24, 2015

मांवां ठंडियाँ छांवां

सुनो
क्या तुम जानते हो ??
वातानुकूलित कमरों से सजे
तुम्हारे घर में
सबसे अधिक पसंद है मुझे
उसकी बालकोनी
जिसमें से झांकता खुला आसमां
उसमें स्वछन्द विचरते खग
अहसास दिलाते हैं मुझे
खुले आसमां के नीचे
माँ का एक कमरे का घर
माँ की मीठी झिड़कियों से महकता
वो खुला आँगन
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       मावां ठंडियाँ छांवां

Thursday, May 21, 2015

मन की व्यथा

एक काली रात में 
खुद से ही बुदबुदाया 
गरीब लाचार बाप...
सो जाता हूँ 
फुटपाथ पर 
शायद 
आ जाये कोई सलमान 
दे जाये एक घर 
मेरे बच्चों को 
लेकर मेरी दौ कोड़ी की 'जान'
जिससे जुटा नहीं पाऊंगा कभी 
छत्त इन अभागों के लिए 



Tuesday, May 19, 2015

उड़ान

जब जब हुई तैयार 
उड़ान भरने को 
बाँधी गई 
सामाजिक बंधनों में कभी 
रिश्तों के ताने बाने में कभी 
चढ़ाई गई अरमानों की बलि 
काट डाले इस समाज ने पर 
दे कर एक अजीब कशमकश 
खड़े कर कुछ अनसुलझे सवाल 
दे गया कोई चुनौती 
फिर से 
स्वछन्द विचरती 
निश्चल बहती 
सरिता के अस्तित्व को 
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Thursday, May 14, 2015

अब शोहरतें अपने नाम लिखें

आओ नए आयाम लिखें 
नवयुग का पैगाम लिखें 
बदनामियों से वास्ता बदस्तूर चला
अब शोहरतें अपने नाम लिखें ||
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Monday, May 11, 2015

तेरी खामोशियाँ

तेरी खामोशियों में मैं ,मेरी आवाज में हो तुम 
तेरी कामयाबी में मैं ,मेरी दुआओं में हो तुम 
तेरी कब्र में दफ़न मैं ,मेरी धड़कन में जिन्दा हो तुम 
मुझमें कुछ कुछ हो तुम, 
तुझमें कुछ कुछ हूँ मैं ...
मुझे सम्पूर्ण करते तुम, 
तुझे सम्पूर्ण करती मैं ...
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Saturday, May 9, 2015

तेरी चुप्पी


मेरे अस्तित्व को निघलती हुई 
तेरी पिरामिडों सी चुप्पी 
दफ़न कर खुद में अनेकों जवाब 
कर गई मुझे 
तुझसे यूँ अलग 
बाँटकर तुझे खुशियाँ मुझे गम 
खींचते हुए मर्यादाओं की एक महीन लकीर 
हमारे बीच 
जिसे ना लाँघने का हमारा प्रयास 
बना ना जाये हमें भी 
बेजान 
इन पिरामिडों की मानिंद ....
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