दोस्तो अभी तक सकारात्मक रचनाएँ लिखती आई हूँ,दामिनी की निर्मम हत्या के बाद एक नकारात्मक रचना लिखी है! अजन्मी बेटी के और माँ के अंतर्द्वंद को दर्शाती रचना...
माँ मुझे इस दुनिया में ना लाना
बेदर्द हैं रिश्ते बेदर्द है जमाना
डर लगता है पिता और भाई से
सुना है वो भी कम नही कसाई से
अभी तो छुपी हूँ आँचल की छाँव में
कल हो जायूंगी जूती किसी पाँव में
घर में तो तुमने मुझे है बचाया
बाहर कहाँ पा सकूँ तेरी मैं छाया
कैसे थाम लूँ किसी दोस्त का हाथ
कब हो जाए वो बेदर्द दुनिया के साथ
डॉक्टर के छूने से लगे डर कैसा
है जो मेरे भाई पिता के जैसा
शायद नहीं सुरक्षित अब तेरी ही बाहों में
'क्योंकि लड़की हूँ मैं' दुनिया की निगाहों में
सुन मेरी विनती मुझे दुनिया में नही लाना
मुश्किल है यहाँ चैन की साँस ले पाना
अगर 'सरिता' तुमने बेटी को है बचाना
तो पड़ जाएगा उसे भी 'दामिनी' बनाना
आओ इस दुनिया को बेटी से खाली बनाएँ
'बेटी बचाओ' नही हम 'भ्रूण हत्या' अपनाएँ