हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Friday, January 31, 2014

मुक्तक [बेटी]

[1]
हर कोई चाहता ऐसा बेटा जिस पर उसको मान हो 
बेटी चाहिए लक्ष्मी जैसी जिससे घर का सम्मान हो
खुद नहीं बनना चाहता कोई भक्त सिंह,झाँसी की रानी 
हर कोई चाहता एक भक्त सिंह जो देश लिए कुर्बान हो /

[2]
झाँसी,लक्ष्मी,दुर्गा बनो पर नहीं तुम दामिनी बनना  
मत ढूंढो तुम भक्त सिंह खुद भक्त सिंह बनना
आशा कैसी दूसरों से खुद ही अगर तुम जागो 
खुद को समझो आम क्यों आप को ख़ास है बनना /

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Wednesday, January 29, 2014

उसका वो पागलपन

याद है मुझे 
उसका वो पागलपन 
लिखता मेरे लिए प्रेम कवितायेँ 
जिनमें होते मेरे लिए कई प्रेम सवाल 
उसमें ही छुपी होती उसकी बेपनाह ख़ुशी 
क्योंकि जानता न था वो मेरे जवाब
वो उसकी आजाद दुनिया थी 
जिसमें नहीं था किसी का दखल
उसके दिल के दरवाजे पर खड़ी रहती मैं 
उस पार से उससे बतियाती 
उसका पा न सकना मुझे 
मेरा खिलखिला कर हँसना
और टाल देना उसका प्रेम अनुरोध  
देता उसको दर्द असहनीय 
जैसा आसमान में कोई तारा टूटता 
और अन्दर टूट जाते उसके ख़्वाब 

Monday, January 27, 2014

अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में

1222    1222    1222     1222
बड़ी मुश्किल से कुछ 'अपने' मिले हमको ज़माने में 
कहीं उनको न खो दूँ ख्वाहिशें अपनी जुटाने में /

बने जो नाम के अपने हैं उनसे दूरियाँ अच्छी 
मिलेगा क्या भला नजदीकियां उनसे बढ़ाने में/

उजाले छोड़े हैं तेरे लिए रहना सदा रोशन  
अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में /

हसीं यादों ने छोड़े हैं सफ़र में ऐसे कुछ लम्हे 
रँगें हैं हाथ अपने अब निशाँ उनके मिटाने में /

दिलों को तोड़ते हैं जो विदा कर यार को ऐसे 
जो थामे धडकनें तेरी न डर अपना बनाने में /

हुई खामोश क्यों सरिता है तू आधार जीवन का 
गँवाना अब नहीं तुम वक्त खुद को आजमाने में 

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Sunday, January 26, 2014

गणतंत्र दिवस दोहावली


आहत सारे देश का आज है स्वाभिमान 
संग आंसुओं बह गये, सारे ही अरमान 

आज कौन दे देश को,सीधा एक जवाब 
बदलेगी सियासत तो, पूरे होंगे ख़्वाब 

ख़ुशी मनाओ आप भी, गणतंत्र हुए आज 
असली है गणतंत्र जब,पाओ पूर्ण स्वराज 

भिन्न भिन्न हैं झाँकियाँ, बनी राजपथ शान 
पूर्ण यही स्वराज दिवस,बना देश की आन 

सबको है शुभकामना,दिन आज संविधान 
छब्बीस जनवरी दिवस, भारत की है शान 
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Friday, January 24, 2014

मजदूर [दोहावली]

ओ बी ओ छंदोत्सव में प्रस्तुत दोहे


दिन भर पत्थर तोड़ती, कहलाती मजदूर 
पेट साथ है क्या करे, भूख करे मजबूर 

ऊपर सूरज तापता ,,अंतर तापे पेट 
पानी पी करती गुजर, मिले बहुत कम रेट 

माह जेठ आषाढ में ,पत्थर गिट्टे तोड़
आग बुझेगी पेट की, पाई पाई जोड़ 

कलम बना है फावड़ा,स्याही तन की ओस
लेखन करती रोज है नहीं कहीं अफ़सोस 

जीना इनको देख के , टूटे ना विश्वास 
श्रम साहस ही श्रमिक के,आभूषण हैं ख़ास 

कुटुम्भ को है पालना, मंहगाई अपार 
बनी नार मजदूर है, नहीं हुई लाचार 

पत्थर पर है ढासना, बोतल से ले नीर 
गिट्टे तसला फावड़ा, कहें ह्रदय की पीर 

माथे पे बिंदी रची ,किया सभी शृंगार 
श्रम से पाले पेट को, नहीं मानती हार  

चढ़ी दोपहर जेठ की ,गला रहा है सूख 
अभी घूँट दो तीन पी,मिटी प्यास औ' भूख 

बोतल पानी की लिए, सने धूल से हाथ
बाकी करना काम है, साथी का दे साथ  

अबला नारी को कहें , उनको मूरख जान 
घर का बोझा ढो रही, श्रम उसकी पहचान 
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Thursday, January 23, 2014

नेता जी सुभाष चन्द्र [दोहावली]

सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस पर विशेष 


जन्म लिया सुभाष ने ,कटक मिली सौगात 
पिता जानकीनाथ थे, प्रभावती थीं मात

राजनीति परिवेश था,वातावरण कुलीन 
मेधावी सुभाष थे ,पढने में तल्लीन 

सहन नहीं अपमान था, भारत का था पूत
आजादी के सफ़र में,बने महान सुपूत /

आजाद हिन्द फौज से,जागा तब विश्वास 
आजादी लो खून दे ,नारा था तब ख़ास /

सुभाष नेताजी बने ,पहुँच गए जापान 
भारत माता के लिए, दे दी अपनी जान / 
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Wednesday, January 22, 2014

गजल


1 2 2 2   1 2 2 2 

दिलों को जो सुहाते हैं /
दिलों पे जाँ लुटाते हैं /

निगाहों से क़त्ल करके
मुझे कातिल बनाते हैं /

दिलों के हैं अजब रिश्ते 
सदा अपने निभाते हैं /

यूँ पल पल मर रही हूँ मैं 
मुझे जिन्दा बताते हैं /

सभी अपने तुम्हारे बिन 
मुझे जीना सिखाते हैं /

सुना है ऐसे में अपने 
भी दामन छोड़ जाते हैं /

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Thursday, January 16, 2014

किनारा इस सरिता का

तू बहादुर बेटी है पंजाब की
तू शान आन और बान है हमारे घर की
तू झाँसी की रानी है
तुझे क्या डर अकेले
दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती हो
हाँ
ऐसे ही तो कहते थे ना हमेशा
जब कहती थी
मेरे साथ कहीं चलने को
आज समझा रहे थे मुझे
पगली क्यों रोती है ?
तेरे अंग संग हूँ हमेशा
तेरे साथ अपनी दोनों भुजाएं
अपने दो बेटे छोड़ आया हूँ
तुम्हे जरुरत नहीं
किसी का मुँह ताकने की
दोस्त जो नहीं पूछते मत कर चिंता
जो साथ हैं उनका कर शुक्रिया
और बढती चल निरंतर
हमारे सपने पुरे करने
जो छोड़ आया हूँ अधूरे तेरे सहारे
मुझे विश्वास है तू पूरा करेगी उनको
अब किसको कहूँगी संग चलने को ???
''मैं हूँ ना''
आपको चिंता करने की जरुरत नहीं
तो शायद कहा होगा बहुतों ने
दोस्तों ने रिश्तेदारों ने
कौन खड़ा हुआ हमारे साथ उस घडी में ?
उनका अहसान वाकई नहीं उतार पाएंगे कभी  
मेरे लिए तो आप हो ना
हमेशा मेरा संभल बन, मार्गदर्शक बन
मुझे प्रेरणा देते हो
सुन रहे हो ना आप
ऐसा कहते कहते आँख जो खुली
तो तलाश थी उस अक्स की
जो मुझे चुप करा रहा था
पर कहीं नहीं था
नहीं नहीं यहीं कहीं था
या है
किनारा इस सरिता का
सरिता जिसका काम ही है
मुश्किलों को लांघना निरंतर बढ़ना

Tuesday, January 14, 2014

मकरसक्रांति दोहावली


मकर राशि में सूर्य का, जैसे हुआ प्रवेश 
हुआ उत्तरायण शुरू, शुभकामना अशेष 

भारत के त्योहार हैं ,सभी के लिए गर्व 
जीवन में उर्जा भरे ,मकरसक्रांत का पर्व 

प्रकृति कृषि ऋतुएं सभी ,हैं जीवन आधार 
सूर्य देव की अर्चना, भरे सभी भण्डार 

इस दिन से दिन रोज ही, तिल तिल बढता जाय
इस कारण सक्रांत है 'तिल सक्रांत' कहलाय 

लोकनृत्य है भांगड़ा , पंजाबी की जान 
पोंगल,बिहु औ' लोहड़ी, भारत की हैं शान

मूंग दाल चावल की खिचड़ी पाचक होय
खानपान की सादगी, मन संयम ना खोय 

रंगीला आकाश है ,मन छाया उल्लास 
उत्सव सभी सक्रांत का, मना रहे हैं ख़ास 
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Friday, January 10, 2014

कभी सोचा न था

कभी सोचा न था ...
कितनी कलरफुल थी 
मेरी दुनिया 
अब तुम्हारे बाद 
ब्लैक एंड वाइट होकर रह जाएगी 
कभी सोचा न था ...
अलमारी में पड़े 
लाल गुलाबी कपड़े 
मुंह चिड़ाएंगे और पूछेंगे 
मुझसे कई सवाल 
कभी सोचा न था ..
आइने के सामने आज 
खड़े होने में डर लगेगा
क्योंकि 
खो दूंगी वो अक्स 
जो मुझे निहारा करता था 
कभी सोचा न था ... 
बड़ी बेपरवाह थी जिन्दगी 
बस तुम्हे बताकर 
दुनिया की परवाह किये बिना 
स्वछन्द घूमा करती थी 
अब घर से बाहर कदम रखने से पहले 
मेरा ही ज़मीर मुझसे सवाल पूछेगा 
कभी सोचा न था.....
मैं भी एक दिन 
रंगीन उड़ती तितली की तरह 
अपने पर खो दूंगीं
कटी पतंग सी हो जाऊँगी 
कभी सोचा न था ..... 
फैसले तो पहले भी 
खुद लिया करती थी 
पर उन पर 
मोहर लगाने वाला ही नहीं रहेगा
कभी सोचा न था... 
कभी कोई फॉर्म भरते हुए 
मेरी कलम 
विवाहिता के कालम पर 
अटक जाएगी 
कभी सोचा न था .....
सचमुच कभी सोचा ही न था ...
                ........सरिता 

Tuesday, January 7, 2014

यादों का वो इक सफ़र है नाम दे गया

जाने वाला साल सब सुख चैन ले गया 
नयनों में है नीर दिल में दर्द दे गया /

क्या मनाएं साल उस बिन अब लगे न दिल 
एक झटके में सभी अरमान ले गया /

मुस्कराएँ हम क्या तेरे बिन ओ साथी अब
खुशिओं का तू सारा ही सामान ले गया /

उसकी हर आहट का होता है मुझे गुमाँ
खुद को समझायें क्या वो संसार से गया /

याद आती उसकी है अब रात रात भर 
यादों का वो इक सफ़र है नाम दे गया /

काटना है अब अकेले उस बिना सफ़र 
जिन्दगी भर का गमे पैगाम दे गया /

Sunday, January 5, 2014

कभी जीवन में अपने कुछ दुखद से पल भी आते हैं

1 2 2 2   1 2 2 2   1 2 2 2   1 2 2 2 

कभी जीवन में अपने कुछ दुखद से पल भी आते हैं
सभी अपने हमेशा के लिए तब छोड़ जाते हैं /

समय अपना बुरा आया,तमस भी साथ ले आया 
करीबी जो रहे अपने वही नजरें चुराते हैं /

किसे फुर्सत हमें देखे हमारा हाल अब जाने  
हमें रुसवाइओं में तन्हा अक्सर छोड़ जाते हैं /
   
मिले ढूंढे नहीं कोई सहारा बन सके जो तब   
मुसीबत में कहाँ अब लोग यूँ रिश्ते निभाते हैं /

भला कर तू भला होगा बुरा मत सोचना मन में
रवायत यह है दुनिया की करम ही साथ जाते हैं /
  
कहाँ वश मौत पे अपना नहीं जीवन पे वश अपना  
ये खेला मौत जीवन का तो भगवन ही रचाते हैं/ 
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Friday, January 3, 2014

तरही गजल

जब से उनका यहाँ आना जाना हुआ 
दिल हमारा भी उनका दिवाना हुआ /

साथ तेरे का जो छूट जाना हुआ 
तब से सबका यहाँ आना जाना हुआ /

माँग तेरी भरूं आ सितारों से मैं 
ऐसा कह जो गया फिर न आना हुआ /

माँग सूनी हुई जो सितारों भरी
माथे की बिंदी छिनना बहाना हुआ /

राहतें अब कहाँ चैन दिल को कहाँ  
जख्म अब मत कुरेदो पुराना हुआ /

याद आती रही रात भर थी मुझे 
भूल वो अब गया इक जमाना हुआ /

उसके आने की टूटी है उम्मीद अब 
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ /

लाडली ही रही बेटियाँ बाप की
लाड़ छूटे जो पति घर ठिकाना हुआ / 
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