हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Saturday, June 28, 2014

मेरी मेट्रो


मेट्रो दुनिया है अजब 
रंग ढंग इसके गजब 

रेड ब्लू यलो ग्रीन वायलेट 
पाँच लाइन हैं दौड़े
दिल्ली का कोना कोना 
अब है इससे जोड़े 

मेट्रो में सब व्यस्त हैं 
क्या बूढ़ा क्या जवान 
कानों में टूटी लिए 
सुन रहे हैं गान 

कोई पढता किताब से 
कोई टैब है खोले
उलझे हैं सब उलझन में 
चेहरा भेद है खोले 

ऐसे हि बदनाम किया 
नारी चुप न होती 
महिलाओं के डिब्बे में 
मजे से हैं सब सोती 

भागदौड़ के जीवन में 
कौन किसे पहचाने 
लेकिन अपनी प्यारी मेट्रो 
सबको अपना जाने 

बैठ जमीं पर सफ़र करें 
अगर सीट न पायें
खड़े खड़े क्यों थकना है 
बैठ थकान मिटायें  

कोई जा रहा ड्यूटी पर 
कोई रहा है आ 
अपना अपना राग ही
हर कोई रहा है गा 

पहला डिब्बा महिलाओं का 
इसमें नर हैं वर्जित 
गलती से कोई चढ़ जाए 
तो फाइन हो जाए अर्जित 

मेट्रो के हैं क्या कहने 
भाईचारा रही बढ़ा 
नियमों से जो हैं अपरचित 
उन्हें नियम रही सिखा 

मेरी दिल्ली महान है 
इसमें मेरी जान 
रिकॉर्ड स्पीड के तोडती 
मेट्रो इसकी शान 
****

Wednesday, June 25, 2014

श्रमिक [कुण्डलिनी]

कैसा जीवन श्रमिक का, दर्द भूख औ प्यास 
पेट भरेगा आज तो ,करे यही नित आस 
करे यही नित आस,काम करे मिले पैसा 
भूखी फिर सन्तान,न्याय है उसका कैसा ||
****

Sunday, June 22, 2014

वजूद

मैं मैं ही रही 
तुम तुम ही रहे
अपने अपने वजूद में सिमटे हुए 
काश
मैं और तुम हम हो जाते 
अपना वजूद 
इक दूजे में खो पाते 
दो देह ,एक रूह से नजर आते 
........................

Saturday, June 21, 2014

मैं माँ हूँ

कभी कभी लेटे लेटे उठकर बैठ जाती 
क्योंकि ठिठुरने लगती मैं अचानक 
तो सोचती 
वो ऐसा क्यों हो ?
वो भी तो ध्यान रख सकता है मेरा 
जैसे मैं अहसास कर लेती हूँ 
जब भी सोये सोये लगता मुझे 
वो ठिठुर रहा है 
ओढाती उसे चादर 
वो जब पढ़ते पढ़ते सो जाता 
उतारती उसका चश्मा 
रख देती कहीं सुरक्षित जगह 
समेटती उसका सामान 
बिना कोई शोर किये 
ताकि वो सो सके आराम से 
फिर लगता मुझे 
अंतर है उसकी और मेरी प्रीत में  
क्योंकि वो बेटा है 
जो सीख रहा है अपनी जिम्मेदारी 
और मैं माँ हूँ 
जिसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास है 

Friday, June 20, 2014

मेरा सुकून

आज बहुत दिनों बाद
हुई आँखों की आँखों से मुलाकात
और दिल से हुई दिल की बात
मिला एक सुकून सा
मुद्दत के बाद
खुली आँखों से देखा शायद
मैंने कोई सपना
करूँ खुद पर यकीं
या करूँ मैं घुमाँ
दोबारा उसी जगह
क्यों तलाश रही थी यह आँखें तुझे
एक अजीब सा सुकून मिला मेरे मन को
जब हुई यह तलाश पूरी 

Wednesday, June 18, 2014

कौवा

हर रोज सुबह 
जब कौवा बोलता है 
मेरे फ्लैट की बालकोनी की मुंडेर से 
देता है त्वरित सन्देश तेरे आने का
जैसे ही रोटी बनाते हुए
आटे का पेड़ा उछल कर गिर जाता है
तो सारा दिन झूमती हूँ ख़ुशी से
इक्कठे करती हूँ शुभ संकेत तेरे आने के
फिर थक कर सो जाती हूँ तेरी ही आगोश में
अपने ख्यालों के घेरे में
सोचते हुए
सपना कभी तो सच होगा
..................................................................
आजकल शायद ना छत्त रही है ना मुंडेर 
इसलिए कौवा किसी के आने का संकेत नही देता 

Tuesday, June 17, 2014

मेरे ख्याल

अक्सर मेरे ख्यालों में
जब भी तुम होते  हो मेरे पास
सिर्फ मुझे सुनते हो
कहते हो अपने दिल की बात
तब सारा जहाँ सिमटा लगता है मुझे
तुझ में कहीं
तभी जैसे कोई
छीन ले जाता मेरे दिल का चैन
कर जाता मुझे बेचैन
जैसे कोई तुझको चुरा ले जाता मुझसे
तोड़ कर मेरे ख्यालों का घेरा
और रह जाती 
मैं और मेरी तन्हाई 
इक टीस लिए मन में 
कुछ खालीपन 
कुछ खो देने की बेचैनी 
मिलता मुझे वापिस 
मेरा खोया सुकून 
तेरी एक झलक 
तेरी कोई खबर पा लेने के बाद 

Thursday, June 12, 2014

माँ [कुण्डलिया]

मिलता मनचाहा अगर सिर पर माँ का हाथ 
बच्चे बनते हैं सबल जो हो माँ का साथ 
जो हो माँ का साथ सामना करते डट कर 
पाते हैं संस्कार अहम से रहते बच कर 
माँ से पा आशीष प्यार से बचपन खिलता 
कहती सरिता मान खुदा भी माँ में मिलता 

*****

Wednesday, June 11, 2014

मजदूर [कुण्डलिनी]

कलम बना है फावड़ा स्याही तन की ओस 
लेखन करना रोज है तनिक नहीं अफ़सोस 
तनिक नहीं अफ़सोस नहीं जो रोटी खाई
पालन को सन्तान जोड़नी पाई पाई ||
*****

Monday, June 9, 2014

मजदूर [कुण्डलिया]

मजदूरी कर पालता अपना वो परिवार 
रोज दिहाड़ी वो करे देखे ना दिन वार  |
देखे ना दिन वार नहीं देखे बीमारी
कैसे पाले पेट वार है इक इक भारी   
मंहगाई की मार ,यही उसकी मज़बूरी  
गेंहू चावल दाल मिले जो हो मजदूरी  ||

उसका जीवन है बना दर्द भूख औ प्यास 
मजदूरी किस्मत बनी जब तक तन में श्वास |
जब तक तन में श्वास पड़ेगा उसको सहना 
तसला धूल कुदाल पसीना उसका गहना 
सरिता पूछे आज कहो कसूर है किसका
भूखा है मजदूर पेट भरे कौन उसका ||
*****

Saturday, June 7, 2014

माँ [कुण्डलिनी]


माँ में तीरथ हैं सभी माँ में हैं सब धाम 
जीवन तुम संवार लो करो नेक कुछ काम 
करो नेक कुछ काम दान यह सच्चा प्यारे
माँ बिन सूना गेह सब हैं सूने नज़ारे ||
****

Monday, June 2, 2014

कुर्सी [कुण्डलिया]

खाली कुर्सी हो गई करें क्यों इंतज़ार 
लूटा मोदी ने ह्रदय छेड़ ह्रदय के तार |
छेड़ ह्रदय के तार राग भी मधुर सुनाये 
जनता कहे पुकार अभी अच्छे दिन आये 
खूबसूरत है जीत बजाओ अब तुम ताली 
कुर्सी लो संभाल हुई है कुर्सी खाली ||

*****