हमराही

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Tuesday, December 23, 2014

इंसानों को यह समझा दो [गीत]

बीच राह श्मशान बना दो 
इंसानों को यह समझा दो 

जीवन नश्वर है यह जानें 
मृत्यु सत्य है उसको मानें 
नफरत छोड़ प्यार सिखला दो 

रूप बड़ा ही सुन्दर पाया 
काया ने कब साथ निभाया 
साँच बुढ़ापे का दिखला दो  

यह जग एक मुसाफिरखाना 
इसका राज नहीं जो जाना 
राज यही उसको बतला दो 

रिश्ते सारे अजब अनूठे 
पाश मोह ममता के झूठे 
प्रीत ईश के संग लगा दो  

Monday, December 22, 2014

कागज़ कलम दवात [कुण्डलिनी]

बहते जब जज्बात हैं, रुकते ना तब हाथ 
कागज़ कलम दवात का, मिल जाता जो साथ ||
मिल जाता जो साथ, पीर है कागज़ हरता 
बहे कलम से पीर, ह्रदय सुकून से भरता ||
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Thursday, December 18, 2014

दर्द उस सुहागिन का चूड़ियाँ समझती हैं

रुख हवाओं का केवल आंधियाँ समझती हैं  
रौशनी की कीमत को बिजलियाँ समझती हैं

दासता क्या होती है दासियाँ समझती हैं 
इंतज़ार होता क्या बेड़ियाँ समझती हैं 

रास क्यों अँधेरे आये हिचकियाँ समझती हैं ? 
रात भर जगी क्यों वो पुतलियाँ समझती हैं ?

जीत हार जीवन में मायने क्या रखती जब 
मौत जीतती आई अर्थियां समझती हैं 

राह देखती है जो साल भर ही फौजी का 
मांग उसकी सूनी को सिसकियाँ समझती हैं 

मौन आज पसरा क्यों खिलखिलाते आँगन में  
दर्द उस सुहागिन का चूड़ियाँ समझती हैं  

बस्तिओं ने झेला है टूटना औ फिर मिटना  
आग पार जाएगी बस्तियाँ समझती हैं 

फूल जो रसीला है तितलियाँ ही जानें बस  
फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं 
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