हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Tuesday, July 30, 2013

धरती माँ [उल्लाला छंद]

धात्री है आधार है ,तुझसे ही विस्तार है 
निष्ठा तू विश्वास तू, हम बच्चों की आस तू  

लेती है जल मेघ से ,वायु चले जब वेग से 
तू सोने की खान है ,मेरा तू अभिमान है 

मानव ने दोहन किया , चीर फाड़ तुझको दिया 
मिट्टी का धोंधा बना , मिट्टी में ही फिर सना    

तू अन्नदा वसुंधरा , दामन लिए हरा भरा  
हो कोइ अनुष्ठान जब ,करते तेरा मान सब

धरा हमारी मात है , करे तु इससे घात है 
हाथ उठा इसको बचा ,नया अब इतिहास रचा
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Monday, July 29, 2013

जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई [गजल]

२१२  २१२  २१२  २१२  २१२  
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई 
प्यास मेरी अधूरी यही रह गई

आशियाने बहे ना डगर ही मिली 
सूचना आसमानी धरी रह गई 

घोर तांडव हुआ खैर पा ना सके
फूल तोडा गया बस कली रह गई

ये कयामत चली लेखनी की तरह 
ख़्वाब टूटे मगर चोट भी रह गई

ये ख़ुशी नागवारी खुदा को हुई 
तो अकड़ आदमी की धरी रह गई

पेड़ काटे अगर तो सही त्रासदी 
पेड़ रोपे धरा फिर हरी रह गई 
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Sunday, July 28, 2013

नगमा

आगे आगे चले हम 
पीछे पीछे प्रीत मितवा 


Friday, July 26, 2013

धरा कर रही गुहार [तोमर छंद]


धरा कर रही गुहार ,सुन लो उसकी पुकार
सबही मिला लो हाथ, छोड़ो नहीं बस साथ 

क्या काले क्या सफ़ेद ,धरा ना करती भेद
आसमां सबका ऐक, काम तू भी कर नेक 

ईश्वर सबका एक, लिए है रूप अनेक 
जान के सब अनजान ,फिर भी लड़े  इंसान -

ना करना तुम कटाव ,धरा का करो बचाव
हरियाली करो यार , बेडा लगेगा पार  
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Thursday, July 25, 2013

मेरे ख़्वाब

ख्वाबों में आकर फिर से,
अरमान जगा गया कोई 
कभी अपना था अब किसी का है,
यह बता गया कोई

संग बैठे थे कभी गाये थे,
मिलकर प्रीत के गीत
सब सुंदर जग सुहाना था ,
जब तुम थे मेरे मीत

कभी आँचल में मेरे गुज़ारे थे 
हमने दिन और रात
आज भी है खुश्बू का अहसास,
तब मीठी थी हर बात

मेरे ख़्वाबों में जो आना तो 
ना जाने के लिए आना
वादा जो किया है 
बस उसे तुम निभाना 

Monday, July 22, 2013

गुरु पूर्णिमा [सार छंद]

गुरु का आओ सम्मान करें , 'गुरु' मतलब समझाएं 

'गु' से होता अज्ञान तिमिर का, 'रु' से उसको हटाएँ

गुरु का आओ सम्मान करें ,गुरु पूर्णिमा आई 

अज्ञान तिमिर का जो हर रहे ,सबके मन का भाई

गुरु का आओ सम्मान करें, अँधेरा दूर हटाएँ

गुरु दक्षिणा आज उसे देवें, ज्ञान प्रकाश बढ़ाएं

गुरु का आओ सम्मान करें, अत्याचार हटाएँ 

वेद पुराणों का ज्ञान दिया, व्यास जयंति मनाएं

Sunday, July 21, 2013

' कुण्डलिया छंद '[बरखा की ख़ुशी]

बरखा रानी आ गई ,लेकर बदरा श्याम |
धरा आज है पी रही ,भर भर घट के जाम|| 
भर भर घट के जाम , हरियाली है छा गई |
महक बिखेरें फूल , सावन रुत है आ गई  ||
लोग हुए खुशहाल ,चला जीवन का चरखा |
खुश हुए हैं बालक, मेघा ले आय बरखा ||
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Saturday, July 20, 2013

कुण्डलिया [सावन]

सावन आया झूम के,देखो लाया तीज
रंगबिरंगी ओढ़नी, पहन रही है रीझ
पहन रही है रीझ, हार कंगन झाँझरिया
जुत्ती तिल्लेदार, आज लाये साँवरिया
उड़ती जाय पतंग, लगे अम्बर मनभावन
झूलें मिलकर पींग, झूम के आया सावन
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Friday, July 19, 2013

कुदरत

खेला करती थी कुदरत

यहाँ खुले मैदान में

इंटों के जंगल खड़े हैं

आज उसी मैदान में

बस कुछ लालच की खातिर

कर दी उसकी शांति भंग

आलिशान मकान तो हैं

दिल में है कितना दंभ

खेल कुछ ऐसा रचा कि

मैदान वापिस पा लिया

जो कुछ भी था तेरा

तुझको है लौटा दिया


समझ जा ओ मूर्ख बन्दे

सुधार ले अपने ढंग

मत कर दोहन उसका

रुक जा ओ इन्सान

कुदरत खेलेगी फिर लीला

कर देगी सब श्मशान

उसका उसको लौटा दे

वृक्षारोपण कर हरियाली ला

छोड़ दे झूठे लालच बन्दे

अपने जीवन में खुशहाली ला
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Thursday, July 18, 2013

कुण्डलिया [नारी]

अबला नारी को कहें, उनको मूरख जान 
नारी से है जग बढ़ा ,नारी नर की खान 
नारी नर की खान ,प्यार बलिदान दिया है 
नारी नहिं असहाय ,मर्म ने विवश किया है 
पाकर अनुपम स्नेह ,बनेगी नारी सबला 
नर जो ना दे घाव ,रहे कैसे वह अबला 
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Wednesday, July 17, 2013

जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!

सब को प्यार दिखाओगे, जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
जल्दी काम निपटाओगे , जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
या बैठे ही रह जाओगे , जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
तुम खोए से रह जाओगे, जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
नमकीन चाय पिलाओगे , जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
तुम आईने से शरमाओगे , जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
तुम घर को जल्दी आओगे, जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
खुद ही शायर बन जाओगे, जब इश्क तुम्हे हो जाएगा!
तुम अपनी ग़ज़लें गाओगे, जब इश्क तुम्हे हो जाएगा !!
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Tuesday, July 16, 2013

अलविदा तार ! अलविदा तार ! अलविदा तार


जब से हुआ है बे तार तार ओझल 
मन है मेरा कुछ बोझिल 
मुझे भी तो एक तार मिला था 
मेरा सबसे पहला और आखिरी तार 
मैंने रखा है उसे आज तक संभाल 
क्योंकि उसमें था मेरे पिता का प्यार 
जो चले गए बैकुंठ हमें छोड़ 
शायद इसीलिए मैं हूँ आत्मविभोर 
आज निकाल डाली सब पुरानी पाती 
जिसमें रखा था वोह तार 
मेरे पिता का प्यार 


यह वोही टेलीग्राम  है जो मेरे पिता जी ने मुझे बटाला [पंजाब] से भेजा था जुलाई 1987 में जोकि पिता जी के एक शिष्य पृथीपाल सिंह ने भेजा था  ,जब मेरा बी एड का परिणाम आया था क्योंकि तब में दिल्ली में थी |

अब नहीं होगा यह कभी किसी के साथ 
क्योंकि 160 वर्षीय होकर मिला है उसे विराम
जिसे कहते थे कभी हम टेलीग्राम  
जो शुरू हुई थी 1863 में 
और अंतिम सांस ली 14 जुलाई ,2013 को 
मैं चूक गई 
किसी अपने को ना भेज पाई तार 
जो हो जाती समय के साथ इतिहास 
फिर चाहे कोई उडाता मेरा परिहास 
आज की तकनीक के आगे 
हमने छोड़ा है पीछे उस प्यारे तार को 
कभी सांसें आती थीं जिससे दूर संचार को 
अब भावी पीढ़ी के लिए 
नहीं होगी इसकी अहमियत ख़ास 
क्योंकि उनको नहीं है इससे कोई आस 
अब बारहवीं के सिलेबस में इसे नहीं सिखाया जायेगा 
अब ईमेल ,मैसेंजर ,व्हाट्स एप्प समझाया जाएगा 
क्योंकि तकनीक ने अब कर लिया है बहुत विस्तार 
अब दूर संचार में बे तार हो गया है तार 

अलविदा तार! अलविदा तार! अलविदा तार ! 




Sunday, July 14, 2013

कुदरत का कानून

काहे करे अभिमान ओ बन्दे 
रह जायेंगे यहीं सब धन्धे  
क्या लाया था ?क्या ले जाना ?
माटी संग माटी  हो जाना  
  
महिमा उस प्रभु की जान  
कर्म से बना अपनी पहचान   
कुदरत का तू मत कर दोहन 
रोक कटाव लगा कर रोहन

नहीं तो पीछे पछताएगा 
सब कुछ खोकर क्या पाएगा 
कुदरत का कानून मान ले 
यहीं मिले इन्साफ जान ले 

रोहन .... एक तरह का वृक्ष 

अरुण को ढेरों बधाइयाँ

गूँजेगी  किलकारियाँ, सुबह शाम दिन रात
मात मनीषा बन गई, अरुण बना है तात 

घर गूँजें किलकारियाँ , सो ना पाएं आप
पता चले बाबू तभी , आप बन गए बाप    

गेह ले आई लक्ष्मी , खुशियाँ कई हजार
स्वस्थ रहे खुशहाल हो, पाए स्नेह दुलार 

अरुण मनीषा आपको , बधाई बेशुमार 
मस्त रहो फूलो फलो ,पार्टी दे दो यार  
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Friday, July 12, 2013

प्रकृति [आल्हा छंद]


कटाव रुके तो पानी रुके, कुपित नहीं होंगे भगवान 
बरखा रानी छम छम बरसे, ख़ुशी मनाएगा इन्सान 
रूद्र ,सोन ,बद्री, केदार में , भोले शंकर करें विश्राम
हँसते गाते यात्रा करते, होकर आते चारों धाम 


ओजोन की परत बचालो ,रक्षक छतरी है बदहाल
गलोबल वार्मिंग को हटादो ,धरती को करके खुशहाल
पेड़ लगालो धरा बचालो ,देदो कुदरत को संकेत
खिल जायेगी उजड़ी धरती ,लहलहाएंगे तभी खेत   
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Thursday, July 11, 2013

प्रलय या आपदा [आल्हा छंद ]



रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार 
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार 
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार 

उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई रात  
कुदरत हुई खून की प्यासी, प्रलय मचा है चारों ओर
कुपित शिवा जलमग्न हो गए,आया है कलयुग घनघोर 

Wednesday, July 10, 2013

मौसम का जादू


काली घटाओं ने दिल्ली को यूँ घेरा है
दिन में ही देखो छाया कैसा अंधेरा है
गोरी क्यों दिल धक धक करे तेरा है
आज तो ठंडी हवाओं का यहाँ बसेरा है
होगी बारिश खूब,दिल कहे आज मेरा है
बहारों ने देखो फिर से जादू बिखेरा है
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Tuesday, July 9, 2013

क्या यही प्यार है ?


सुबह उठते जिसे देखने की चाह हो
 मन हर पल देखता जिसकी राह हो
क्या यही प्यार है?

मंदिर में भगवान दर्शन की जो आस हो
किसी के पास खड़े होने का अहसास हो
क्या यही प्यार है?

जिसके पास बैठने की कल्पना से दूर थकान हो
जिसके गोद में सर रखने के बाद ना कोई अरमान हो
क्या यही प्यार है?

नफ़रत ना हो जिससे लाख कोशिश के बाद
जिसे ना भूल पाएँ हो दुनिया उसी से आबाद
क्या यही प्यार है?

जिसका दिल कहीं,धड़कन हो कहीं और
शायद वोही है आपका सच्चा चितचोर

इसे पढ़ते हुए आए जो याद बार बार
मान लो उसी को अपना सच्चा प्यार

जो होता नहीं कभी बिना ऐतबार
हाँ, यही है, यही है सच्चा प्यार

Monday, July 8, 2013

मेरी 100वीं गुज़ारिश

आज गुज़ारिश पर 100 वीं पोस्ट के साथ 
आप सबका आशीर्वाद चाहती हूँ 
जो मुझे निरंतर आगे बढ़ने में सक्षम करेगा |
कुछ पंक्तियाँ आप सबकी नजर 
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फरवरी 2012 में मैंने ब्लॉग बनाया जो अपना है, 
लिखते हुए 'गुजारिश' पर सच किया एक सपना है| 

'मेरी सच्ची बात' बता कर आपके संग बतियाती हूँ, 
'ॐ प्रीतम साक्षत्कार ॐ' पर प्रभु से रूबरू कराती हूँ|

सबके आशीर्वाद संग जो उड़ान भरनी है अभी बाकी है,    
अभी तो नापे हैं मुठ्ठी भर सपने सारा जहां अभी बाकी है| 
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Sunday, July 7, 2013

हाइकु [मानव व प्रकृति]

मानव करे
दोहन है अपार
लाये विपदा

क्यों छेड़छाड़?
मानव करे
कुदरत के साथ

मानव करे
खिलवाड़ है जब 
आपदा आए

ना करो यार
विपदा यूँ तैयार
करले प्यार

पेड़ कटाव
ग्लोबल वार्मिंग है
बढती जाये

रोक दोहन
कर वृक्षारोपण
हरियाली ला

लगालो पेड़
रोको धरा कटाव
करो बचाव

लगाओ पेड़
कुदरत से प्यार
प्रलय टालो

रोको कटाव
प्रकृति का बदला
जायेगा टल 


Saturday, July 6, 2013

प्यार हुआ ,इकरार हुआ !



प्यार हुआ,                                             
इकरार हुआ!
फिर सहमा दिल,
सनम कभी तो मिल!
वो आया जब,
दिल मचला तब!

प्यार हुआ,                                          
इकरार हुआ!
फिर सुकून मिला,
दिल फूल सा खिला!
तू मुस्कान मेरी,
मैं हूँ जान तेरी!

प्यार हुआ 
इकरार हुआ
ना जाना सनम,
तुम्हे मेरी कसम!
भूलो सारे गम,
क्यों बिछुड़े हम?

Friday, July 5, 2013

सुप्रभात दोहे 2.

सुबह सुहानी आ गई  ,लेकर शुभ सौगात |
अधरों पर मुस्कान धर, प्यार बसे दिन रात||
पूरे हों सपने सभी ,रहो न उनसे दूर |
गम का ना हो सामना ,ख़ुशी मिले भरपूर||
तारे सारे छुप गए ,आई प्यारी भोर |
आँगन खुशिओं से भरे ,मनवा नाचे मोर||
मिले सुखद सन्देश जो ,अधर खिले मुस्कान| 
खुशिओं से आगाज हो ,मिले हमेशा मान||
पुष्प सी मुस्कान लिए ,रहो हमेशा पास |
होना ना उदास कभी क्योंकि आप हो ख़ास||
दिवस आज रविवार का ,करो आज विश्राम| 
बाकी कल सब देखना,छूट गए जो काम||
रविवार का दिवस गया, छोड़ो अब  विश्राम| 
पूरे करलो अब सभी, छूट गए जो काम||
भोर सुहानी दे गई ,खुशिओं का पैगाम |
हर दिन ही लाये ख़ुशी ,करलो ऐसे काम ||

Thursday, July 4, 2013

सुप्रभात दोहे 1.


दोहे  रचने रोज के , आई हूँ मैं आज |

अधरों पर मुस्कान धर ,करती हूँ आगाज ||
नई सुबह ले आ गई, नया सुखद सन्देश |

पूरी हो हर कामना ,संकट हरे गणेश||
आये कोई विघ्न ना ,सर पर रखना हाथ|

पूरी करना कामना ,हे नाथों के नाथ||
चूम उठाया भोर ने ,ख़ुशी मिली है ख़ास | 

सुबह संदेशा आपका ,दे जाये नव आस  ||
बन जायेंगे आपके, सारे बिगड़े काम |

बिना थके बढते रहें , मन में धारे राम||
सुबह सुहानी आ गई, लेकर मस्त  फुहार |

पूरी हो हर कामना , खुशियाँ मिलें अपार||
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Wednesday, July 3, 2013

कुण्डलिया [बरखा]


बरखा छम छम आ गई ,लेकर सुखद फुहार 
सावन के झूले पड़े ,कोयल करे पुकार 
कोयल करे पुकार ,सबहीं का चित चुराए 
मीठे मीठे आम ,सभी के मन को भाए
सखि ना झूला सोहि , ना ही चले अब चरखा
आए अभी सजन न, आ गई है रुत बरखा   

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Tuesday, July 2, 2013

दोहे [बरखा]



जल बिन सब बेजान हैं ,धरती कहे पुकार
बरखा देखो आ गई ,लेकर सुखद फुहार

घाव धरा के भर गए , ग्रीष्म हो गया लुप्त
जल फैला चहुँ ओर है ,धरा हो गई तृप्त

बरखा ले कर आ गई , राहत और सुकून

दिल्ली भी अब बन गई ,देख देहरादून