हमराही

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Monday, March 31, 2014

नवसंवत्सर दोहावली

चैत्र मास की प्रतिपदा, हर्षित बहुत कृषाण 
नवसंवत्सर के दिवस, हुआ सृष्टि निर्माण |

आप गुड़ी पड़वा कहो ,या हिन्दू नववर्ष 
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, सब लें मना सहर्ष |


बसंत के नवरात्रि हैं, भरें ह्रदय उल्लास  
उपासना माँ की सभी, करें संग विश्वास |
विक्रमी संवत है नई, शक संवत भी आज  
दयानंद जी ने रचा, इस दिन आर्य समाज |

उपासना माँ की सभी, करें आज प्रारंभ 
नवरात्रि के आगाज से, मिटते सारे दंभ |

बर्फ लगी है पिघलने, बौराये हैं आम  
रातें घटने हैं लगी, दिन में होता काम |

नव संवत पर संघ भी, सदा निभाए रीत  
जन्म हेडगेवार का, संग मनाए प्रीत |

नव सरंचना के लिए, कुदरत है तैयार
छोड़ आलस्य को बही, चेतन भरी बयार |

नवसंवत्सर अब नया, लाये आशीर्वाद  
सुख समृद्धि का वास हो, रहो सदा आबाद |


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Sunday, March 30, 2014

रिश्ते [कुण्डलिया]

रिश्ते बनते प्यार से ,मत करना तकरार 
खुशियाँ बसती हैं यहाँ, चहक उठें परिवार |
चहक उठें परिवार, सभी जो मिलझुल रहते
मुश्किल करते दूर ,सुख दुःख मिलकर सहते
सुदृढ बने परिवार ,तो बसें वहाँ फरिश्ते 
तनिक न रहे खटास ,बनाना ऐसे रिश्ते ||
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Thursday, March 27, 2014

अपने [कुण्डलिया]

अपने आँसू दे गए ,किया हमें बेहाल 
नया साल लाये नई खुशियाँ करें कमाल 
खुशियाँ करें कमाल, दूर हों उलझन सारी 
छाए नया बसंत, खिले अब बगिया न्यारी 
सरिता करे गुहार, पूर्ण हों सारे सपने 
करना रक्षा ईश,नहीं बिछुड़ें अब अपने 

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Friday, March 21, 2014

अकेलापन [कुण्डलिया]

बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात 
जान हमारी ले गए ,बहते हैं जज्बात /
बहते हैं जज्बात सजल हैं आँखें रहती
टूटा है विश्वास, हर निगाह यही कहती 
तुम बिन हैं सुनसान सभी दुनिया के मेले 
सरिता रही पुकार, हर रोज बैठ अकेले //
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Tuesday, March 18, 2014

मुक्तक [ नारी]

अम्बे काली दुर्गा माता सब नारी कहलाती
कन्या पूजन के दिन घर घर नारी पूजी जाती 
क्यों कन्या को पैदा करके घबराती है नारी 
सरे आम चौराहे में क्योंकि वो है लुट जाती   

मानसिकता यह कैसी जो नर पर है अब भारी 
माँ बहन या बेटी सबकी भी तो है इक नारी 
बेटा बेटी को बराबर का मान अगर दिलाएं
नर सम्मान दे नारी को नारी भी जाये वारी 

आओ अब तो इस समाज में इन्कलाब हम लायें  
नारी को हम घर समाज में अब सम्मान दिलायें
बाल बाला को शिक्षित कर दूर करें दहेज़ की प्रथा  
अपनी बेटी को भेज सुरक्षित सबकी बेटी अपनायें 
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Monday, March 17, 2014

फाग [कुण्डलिया]

आया फाल्गुन झूम के,भीगे हैं अहसास 
फाल्गुन की है पूर्णिमा,होली का दिन ख़ास /
होली का दिन खास,मिल संग प्यार मनाएं 
छोड़ें ईर्ष्या द्वेष , सभी को गले लगाएं 
मिले जो बिछुड़े मीत,सभी ने फाल्गुन गाया
सभी मनाओ मीत फाल्गुन ने है मिलाया 
आओ खेलें फाग,झूम के फाल्गुन आया //

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Sunday, March 16, 2014

छन्न पकैया छन्न पकैया [होली]

छन्न पकैया छन्न पकैया,आ मेरे हमझोली 
कुदरत ने हैं रंग बिखेरे ,आओ खेलें होली 

छन्न पकैया छन्न पकैया, आओ काका काकी 
आओ सब को गले लगा लो, रहे न शिकवा बाकी 

छन्न पकैया छन्न पकैया ,उत्सव फाग अनोखा 
राधा कान्हा के ही जैसे ,प्रेम रंग दे चोखा  

छन्न पकैया छन्न पकैया, दे गया खुशनसीबी 
अपनों को है मिलने जाना, भूले सभी गरीबी 

छन्न पकैया छन्न पकैया ,ये कैसी लाचारी
सज्जन को तो टिकट मिले ना, पायें भ्रष्टाचारी 

छन्न पकैया छन्न पकैया ,भाँग पिये इतराये
बीवी बैठी डंडा लेकर ,घर कोई पहुँचाये   

छन्न पकैया छन्न पकैया, भूत बने मतवाले 
अपने अपने खुद पहचानो ,मुँह हैं उनके काले 

छन्न पकैया छन्न पकैया रहे नहीं अब अन-बन 
काहे का झगडा है भैया निकलो घर से बन-ठन 

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Saturday, March 15, 2014

होली

लेकर बहार फाल्गुन आया 
सबका दिल है अब हर्षाया 
जाकर सबको गले लगाओ 
झूमो मिलकर नाचो गाओ |

फाल्गुन में जो होली आई 
मिलकर सबको दो बधाई 
खेलो होली संग सभी के 
लगा दो आज रंग सभी के |

चाचा चची भैया भाभी 
हमको दो मोटर की चाबी 
हम भी जरा घूम के आयें 
धमा चौंकड़ी आज मचायें |

प्रदूषण को अभी सब रोको 
बच्चों को ना अब तुम टोको
फूलों संग सभी खेलो होली 
गले लगा के तुम हमझोली |

Friday, March 14, 2014

महिला दिवस पर [कुण्डलिया]

सारी दुनिया कर रही अब तेरी पहचान 
तू दुर्गा तू शक्ति है तेरा कर्म महान 
तेरा कर्म महान नहीं बनना तू अबला 
खुद की कर पहचान हुई तू सक्षम सबला 
पहचानो अधिकार करो शिक्षित हर नारी 
होना कभी न मौन झुकेगी दुनिया सारी 

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Tuesday, March 11, 2014

फाल्गुन दोहावली


फाग मास की पूर्णिमा, रंगों का त्योहार 
 खिलती सरसों खेत में, फाल्गुन बाँटे प्यार 

पहला दिन है होलिका, दूजा है धुरखेल 
भारत औ' नेपाल में, खेलें हैं यह खेल 

आओ यारो सब मिलो, लेकर रंग गुलाल 
नीला पीला औ' हरा संग गुलाबी लाल 

करें दहन सब होलिका, लगता बाद गुलाल
धमार से है फाग का, मिला ताल से ताल 

काम महोत्सव तुम कहो ,राग रंग या पर्व 
होली दिन है मेल का, करते सारे गर्व 

आया है अब फाग जो, रंगीन है फुहार 
भूलो शिकवे आप भी, बांटो सबको प्यार /

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Sunday, March 9, 2014

फाल्गुन [कुण्डलिया]

आया फाल्गुन झूम के, भीगे हैं अहसास 
फाल्गुन की है पूर्णिमा,होली का दिन ख़ास /
होली का दिन खास,मिल संग प्यार मनाएं 
छोड़ें ईर्ष्या द्वेष , सभी को गले लगाएं 
मिले जो बिछुड़े मीत,सभी ने फाल्गुन गाया
आओ खेलें फाग,झूम के फाल्गुन आया //

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यह दिल

यह दिल बड़ी अजीब शय है 


खुश हो तो 
बहकता है 
चहकता है 
महकता है 
उछलता है 
मचलता है 
टूटता है तो 
हो जाता बेदर्द 
देता इंतहा दर्द 
कर देता सर्द 
खो जाता चैन 
कर देता बेचैन 
हर दिन हर रैन 
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Wednesday, March 5, 2014

तुम बिन प्रिय

कुछ कम रोशन है रोशनी तुम बिन
बरसात कम है गीली तुम बिन
हवाओं में खुश्बू नहीं है तुम बिन
चाँद की कम है चाँदनी तुम बिन
सूरज करे ना उजाला तुम बिन
घर बन गया मकान है तुम बिन
भंवरे नही हैं गुनगुनाते तुम बिन
थम सा गया है वक्त तुम बिन

पर मेरी हर ख्वाहिश है तुम से
पर अब भी हर सांस में बसे हो तुम
हर धड़कन में आवाज़ है तुम्हारी
हर पल जैसे छू जाते हो दिल को
हर आहट में अहसास है तुम्हारा

पीछे से आकर 
आँखें बंद करते हो
और पूछते हो ,
कौन हूँ मैं?
तुम वोही हो, 
जिसके होने से
चाँद की चाँदनी,
हवाओं की खुश्बू
सूरज का उजाला,
भंवरों का गुंजन,
घर का अहसास 
और 
सबसे ऊपर
जिसके होने से 
मैं हूँ, ,पगले !
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Monday, March 3, 2014

बिटिया

बिटिया ना अपनी हुई ,कैसा रहा विधान 
राजा हो या रंक की, बिटिया सभी समान ।
बिटिया सभी समान ,रहेंगी सदा बेगानी
छोड़ेगी वो गेह, रीत पड़ेगी निभानी 
चाहे गेह अमीर या, रही गरीब की कुटिया 
सरिता कहती मान, पराई होती बिटिया।।
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Sunday, March 2, 2014

करते खुद से प्यार [कुण्डलिया]

करते खुद से प्यार तो जीना हो आसान 
काहे उलझो मोह में खुद को लो पहचान /
खुद को लो पहचान आशा स्वयं से करना 
बाधा रहें हजार उनसे नहीं तुम डरना  
सरिता कहती मान ईश हैं संकट हरते 
जाना जिनको पार वो भजन प्रभु का करते 
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