हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Sunday, June 30, 2013

हाइकु [पाखंड]


नारी की रक्षा
सरकारी पाखंड 
रहो सचेत 

चुनावी साल 
नित नई योजना  
पाखंडी नेता 

भूखी जनता 
अन्न श्री योजनाएं
सिर्फ पाखंड 

आई पी एल 
पाखंडी हैं अध्यक्ष  
कुर्सी ना छोड़ें  

नक्सलवादी 
खुद बनाए जाएँ 
आतंकवादी  

पाखण्ड देखो  
कांग्रेसी जो मरते  
लगें कीमती 

पाखंड जानो  
दुश्मन काटे सर 
क्यों देशद्रोही?

किस लिए है 
पाखंडी सरकार 
बरक़रार 
  

Saturday, June 29, 2013

क्रिकेट [दोहे]




गेंद उड़ाए गिल्लियां, खड़ी दंडिका तीन |

चीयर गर्लज हैं नाचती, बजा रहे सब बीन|| 


नीलाम खिलाडी हुए ,बिगड़ा सारा खेल|

रिस्ट बैंड ले तौलिया ,पहुँच गए सब जेल|| 


नीलगगन में उड़ रहे ,बादल हैं सब श्वेत |

खेल मगर काला हुआ ,मिले गलत संकेत|| 

Thursday, June 27, 2013

चुनावी साल में नेता जी

आज हर ओर खुदी है सड़क
खड्डों मिट्टी की है भरमार

क्योंकि चुनाव को रह गया है एक साल



इसलिए हरेक नेता जी को 

सड़क अब टूटी नज़र आने लगी है

अपनी बेरूख़ी जनता अब भाने लगी है

अब सफाई वाला ,कूड़ा उठाने वाला हाज़िरी लगाने लगे हैं
जो कभी दीवाली,लोहड़ी,होली पर बस बक्शिश लेने आते थे

सारा दिन पार्क के पास बैठे सुस्ताते थे

वहीं होती हाज़िरी,चाय और पानी

बिना कामके ही बेबाक जिंदगानी
अब प्यारी जनता का दर्द भी सुना जाएगा
क्योंकि चुनाव में नेता जी को इनके द्वारा ही चुना जाएगा

सब वादे आख़िरी छ: महीनों में पूरे किए जाएँगे

नेता जी अब मासूम जनता के लिए धक्के खाएँगे

रेडियो पर रोज सरकार की उपलब्धियां सुनाई जाती हैं
हर रोज नई नई योजनाएं बनाई जाती हैं 

जो होंगी अभी के अभी क्रियान्वित सारी 

क्योंकि अब है जनता से वोट लेने की बारी



भोली जनता फिर से सब मंहगाई भूल जाएगी 

क्योंकि उनकी हर कोशिश अब टीवी पर सराही जाएगी 

है चेतावनी मत भूलना ,किस तरह गुजरे हैं पांच साल 

नहीं तो फिरसे हो जाओगे पांच साल के लिए बेहाल
मंहगाई घोटाले आसानी से भूल मत जाना 
यही समय है अगर है इनको सबक सिखाना 
वोट देना सोच समझ कर ए प्यारो 
अपने वोट को यूँ व्यर्थ न गंवाना यारो

Tuesday, June 25, 2013

पिता : विशेष सूचना

दोस्तो
 पिता दिवस पर स्वरचित रचनाएँ 
में भाग लेने वाले सभी रचनाकारों का हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ 
एवं   
 जिन रचनाकारों की रचनाओं का चयन हुआ है
उनको हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ 
चयनित रचनाकार निम्नलिखित हैं
1.
अरुण शर्मा 'अनन्त'
 2.
धीरेंदर सिंह भदौरिया जी 
3.
पुनीता सिंह 
4.
सुमन

इनकी रचनाएँ 'ब्लॉगप्रसारणके 
विशेष रचना कोना 
में 
कल से लगाई जाएँगी 
अंजुम पत्रिका 
एवं 
निर्झर टाइम्स 
में आपकी रचनाएँ भेज दी गई हैं 
प्रकाशित होते ही लिंक आपको भेज दिया जाएगा      
  

Saturday, June 22, 2013

मुखौटा

मुखौटे पर मुखौटा चढाए बैठे हैं सब
जाने असली चेहरा नजर आएगा कब


दुनिया हो गई है पाखंडी और चोर 
घर में कुछ और है बाहर कुछ और

घर में मुखौटा उतारकर दूसरा चढाते हैं 
अपने आप को गुणी और सभ्य बताते हैं


सोचते हैं पहचान छुपा लेंगे इसे पहन कर
खुद को खुद से ही अनजान बनाये बैठे हैं 


Friday, June 21, 2013

'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 7.[अंतिम]

पिता की छत्र-छाया वो ,
हमारे सिर पै होती है |
उंगली पकड़ हाथ में चलना ,
खेलना-खाना, सुनी कहानी |
बचपन के सपनों की गलियाँ ,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||
वो अनुशासन की जंजीरें ,
सुहाने खट्टे-मीठे दिन |
ऊब कर तानाशाही से,
रूठ जाना औ हठ करना |
लाड प्यार श्रृद्धा के पल छिन,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||

सिर पर वरद-हस्त होता है ,
नव- जीवन की राह सुझाने |
मग की कंटकीर्ण उलझन में,
अनुभव ज्ञान का संबल मिलता|
गौरव आदर भक्ति-भाव युत,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||
स्मृतियाँ बीते पल-छिन की,
मानस में बिम्वित होती हैं |
कथा उदाहरण कथ्यों -तथ्यों ,
और जीवन के आदर्शों की |
चलचित्रों की मणिमाला में ,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||
श्रृद्धा -भक्ति के ज्ञान-भाव जब ,
तन-मन में रच-बस जाते हैं |
जग के द्वंदों को सुलझाने,
कितने भाव स्फुरित रहते |
ज्ञान-कर्म और नीति-धर्म युत,
कितने जीवन मिल जाते हैं ।।


डा. श्याम गुप्त

"बाबुल की दुआएं लेती जा -जा तुझको सुखी संसार मिले"
"जिस द्वार पे जाए डोली उसी द्वार से निकले अर्थी "
"मुझे चढ़ना है स्वर्ग की सीढियाँ
इसलिये चाहिए कुलदीपक "
आज का पिता
नहीं कहता ये सब बातें।
बेटा चिराग तो बेटी रौशनी
बेटा सांस तो बेटी ज़िन्दगी
बेटा मुस्कान तो बेटी है खुशी
बेटा फूल तो बेटी कोमल- कली
दोनों ही उसकी आँखों का तारा
दोनों के कंधों का लेता है सहारा
उसके बुढापे का दोनों हैं आसरा
पुनीता सिंह

पिता

जून की गर्म दोपहर में
बरगद की छाँव पिता है
शीतलहरी की रातों मे
जलता सा अलाव पिता है
भवसागर की तूफ़ानों में
प्राण रक्षक नाव पिता है
जीवन संकट की बेला में
महादेव का पाँव पिता है
मतलबी निष्ठूर जहाँ में
बसा-बसाया गाँव पिता है

सुलोचना वर्मा

Thursday, June 20, 2013

'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 6.

ऊँगली पकड़ा कर उसने कहा ,
चल तुझे दुनिया की राह बताऊँ,
धीरे धीरे लडखडाते हुए इन,
नन्हे क़दमों को आगे बढाऊँ,
तू थक जाये या रुक जाए ,
तो मेरी छावं में सो जाना ,
मैं तेरा साया हूँ अभी
मीलों तक है तेरे संग जाना,
मैंने तुझे जनम न दिया,
ऐसी कोई बात नहीं ,
पर तुझमे मेरा लहू है ,
हर क्षण बात साथ रही,
आँचल माँ का नहीं पर,
स्नेह से गला भर आता है,
जो वक्त मेरे पास है ,
रोजीरोटी में निकल जाता है,
दिन भर की थकान लिए,
जब मैं घर आता हूँ ,
तेरी इक मुस्कान को देख,
दुनिया भूल जाता हूँ ,
यही सोचता हूँ हर पल ,
एक दिन तू गर्व बने मेरा ,
तेरे नाम से मेरा नाम होगा ,
तू भी सोच लेना तेरी परवरिश,
के बदले में ये मेरा इनाम होगा |


मंजूषा पांडे

पित्र वर्ग के प्रथम प्रतिनिधि,परम पूज्य पिता जी हैं।
पहचान,नाम,अधिकार उन्हीसे,सुरक्षा कवच पिताजी हैं।
संतान के पैदा होते ही,बनगए जिम्मेदार पिताजी हैं।
हर काम करें संतान की खातिर,वो कामगार पिताजी हैं।
सुख का भी कर त्याग, चाहते सुखी संतान पिताजी हैं।
संतान से अपने अरमानों को,चाहें साकार पिताजी हैं।
संतान की खातिर हर मुश्किल,लेने तैयार पिताजी हैं।
संतान भले ही बूढ़ी हो,पर समझें ना-समझ पिताजी हैं।
कर सावधान हर वक्त हमें, खुद चिंताग्रस्त पिताजी हैं।
परमपिता के बाद दूसरे,हित साधक पूज्य  पिताजी हैं।
संतान सौंप दे जीवन उनको,फिर भी साहूकार पिताजी हैं।
पितृपक्ष त्यौहार अनूठा, जिससे याद आते रहे पिताजी हैं |


भरद्वाज ग्वालियर


आज... भी तू मेरे साथ है...पापा

देखता हूँ जब अपने बच्चोँ को
थामेँ हुऐ उंगली मेरी
बहुत याद आती है मुझे पापा तेरी
तेरे कान्धे पे बैठ देखता था दुनिया
तेरी बाहोँ मेँ खुद को पाता था निर्भय
वो बचपन के दिन भी अज़ब दिन थे पापा
कुछ भी ना जब मेरी समझ मेँ था आता
मेरी ही भाषा मेँ तू मुझ को था समझाता
दुनिया का अच्छा बुरा मुझे तू बताता
अपने दर्द को तूने छूपाया सभी से
मेरे लिये ना जाने तू कितनी रातोँ को जागा
तेरे दम पे बड़ा हो गया मैँ
अपने ही पांव पे खड़ा हो गया मैँ
तेरे ही आदर्शोँ पे चला जा रहा हूँ
जो तुझ से सीखा वो बच्चोँ को समझा रहा हूँ
तुझ को नमन बहुत मेरे पापा
आज भी हर कदम तू मेरे साथ है पापा

अशोक अरोरा

Wednesday, June 19, 2013

'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 5.

मुझे पिता नही , एक भगवान मिला है,
जीता जागता एक वरदान मिला है,
ऊँगली पकड़कर जिसकी,
चलना है सिखा हमने,
जिन्दगी जीने की समझ ,
सीखी है जिनसे हमने ,
आकाश से भी ऊँचा है कद जिनका,
गहराई है बातो में उनकी,
अश्क न आने दिए आँखों में मेरी ,
परवरिश इतने प्यार से की है,
हर दर्द को समेट कर अपने आगोश में,
खुशियों से भर दी है जिन्दगी मेरी,
ऐसे पिता को शत शत नमन करता हूँ ,
ऐसे कई जनम भी उनकी सेवा को अर्पण करता हूँ,


डॉ. शौर्य मलिक



ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू


छोड़ इस लोक को ऐ बाबुल
परलोक में अब रहता है तू
कैसे बताऊं तुझको ऐ बाबुल
मेरे मन में अब बसता है तू
बन गए हैं सब अपने पराये
न होकर कितना खलता है तू
देख माँ की अब सूनी कलाई
आँखों से निर्झर बहता है तू
पुकारे तुझको ‘मन’ साँझ सवेरे
मंदिर में दिया बन जलता है तू
ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू....
ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू..... !!


सु..मन


क्या करूँ समर्पित


पितृ दिवस पर
क्या लिखूँ, क्या करूँ समर्पित
कैसे दूँ शब्द भावों को मन के
मात्र बचपन की कुछ यादें नहीं तुम
कैशोर्य का लड़कपन, यौवन का मार्गदर्शन हो .
हर कदम पर साथ चले जो
ऐसी घनेरी, स्नेहल छाया हो तुम
हाँ, मेरे अपने वृक्ष हो तुम
हर ताप-संताप स्वयं सह
अपनी अमृत धारा से सरसाते
हाँ मेरे अपने बादल हो तुम
बचपन से अब तक , हर कदम पे
स्थिरता दे क़दमों को मुझे संभाला
निर्भय हो जिस पर पग रखती
हाँ, मेरे अपने धरातल हो तुम
क्या लिखूँ, कैसे कुछ शब्दों में
बखान करूँ तुम्हारा
क्या करूँ समर्पित
पितृ दिवस पर


शालिनी रस्तोगी


Tuesday, June 18, 2013

'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 4.


मैं पिता हूँ तो क्या मुझमें दिल नही

मैं पिता हूँ तो क्या मुझमें दिल नही
क्यूँ मुझे कमतर समझा जाता है
क्या मुझमें वो जज़्बात नही
क्या मुझमें वो दर्द नही
जो बच्चे के कांटा चुभने पर
किसी माँ को होता है
क्या मेरा वो अंश नही
जिसके लिए मैं जीता हूँ
मुझे भी दर्द होता है
जब मेरा बच्चा रोता है
उसकी हर आह पर
मेरा भी सीना चाक होता है
मगर मैं दर्शाता नही
तो क्या मुझमें दिल नही
कोई तो पूछो मेरा दर्द
जब बेटी को विदा करता हूँ
जिसकी हर खुशी के लिए
पल पल जीता और मरता हूँ
उसकी विदाई पर
आंसुओं को आंखों में ही
जज्ब करता हूँ
माँ तो रोकर हल्का हो जाती है
मगर मेरे दर्द से बेखबर दुनिया
मुझको न जान पाती है
कितना अकेला होता हूँ तब
जब बिटिया की याद आती है
मेरा निस्वार्थ प्रेम
क्यूँ दुनिया समझ न पाती है
मेरे जज़्बात तो वो ही हैं
जो माँ के होते हैं
बेटा हो या बेटी
हैं तो मेरे ही जिगर के टुकड़े वो
फिर क्यूँ मेरे दिल के टुकडों को
ये बात समझ न आती है
मैं ज़िन्दगी भर
जिनके होठों की हँसी के लिए
अपनी हँसी को दफनाता हूँ
फिर क्यूँ उन्हें मैं
माँ सा नज़र ना आता हूँ

वंदना गुप्ता

बरगद से बाबूजी

आज भी
तपती धूप में जब
सिर पर बादल की छाँह
आ जाती है तो
उन बादलों के बीच मुझे
आपका ही आश्वस्त करता सा
मुस्कुराता चेहरा
क्यों दिखाई देता है बाबूजी ?
आज भी
दहकती रेत पर जब
मीलों चलने के बाद
घने बरगद का शीतल साया
मिल जाता है तो
उस बरगद की स्निग्ध शाखो
ं के स्पर्श में मुझे आपकी
उँगलियों का स्नेहिल स्पर्श
क्यों महसूस होता है बाबूजी ?
आज भी
संघर्षपूर्ण जीवन की
मुश्किल घड़ियों में हर कठिन
चुनौती का सामना करने के लिये
मुझे आपके हौसले और हिम्मत
देने वाले शब्दों की ज़रूरत
क्यों होती है बाबूजी ?
भले ही मैं जीवन के किसी भी
मुकाम पर पहुँच जाऊँ,
भले ही मैं अपने बच्चों का
संबल और सहारा बन जाऊँ
भले ही घर में सब हर बात पर
मार्गदर्शन के लिये
मुझ पर निर्भर हो जायें
लेकिन यह भी एक
ध्रुव सत्य है कि
आज भी
मेरे मन की यह
नन्हीं सी बच्ची
अपनी हर समस्या के
समाधान के लिये
आप पर ही आश्रित है बाबूजी
और हर मुश्किल घड़ी में
आज भी उसे
दीवार पर फ्रेम में जड़ी
आपकी तस्वीर से ही
सारी हिम्मत और प्रेरणा
मिलती है बाबूजी !

साधना वैद

पिता का साथ ही जैसे सुरक्षा का घेरा ....

पिता अपनी बेटियों को
बूढ़े
कहाँ नज़र आते है ...
उनको तो अपने पिता
वैसे ही दिखते है ,
जैसे बचपन में दिखते थे,
एक सच्चे हीरो जैसे ...!
जो उनके लिए
सब कुछ
कर सकते थे तब भी
और अभी भी ...
भीड़ हो या हो
अँधेरा हो ऊँगली पकड कर
या कभी गोद
में उठा कर निकाल ही ले
जाते थे तब ...
सर पर रखा
उनका स्नेहिल हाथ
जैसे सारी मुश्किलों से दूर
करता नज़र आता था तब ...
और अब भी
बेटियों को पिता का
साथ और ख्याल ही
अपने आप
में जैसे सुरक्षा का घेरा ही हो ...

उपासना सिआग

Monday, June 17, 2013

'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 3.


बचपन के इक बाबूजी थे 
सीधे सरल अनुशासन प्रिय थे मेरे बाबूजी ।
मुझे वैज्ञानिक बनाया, पोस्टमास्टर थे मेरे बाबूजी ।।
समय प्रबंधन का पाठ पढ़ा गए मुझे मेरे बाबूजी ।
गलती पर समझाते, डांटते, मारते थे मुझे मेरे बाबूजी ।।
स्वाभिमानी धार्मिक ज्ञान के सागर थे मेरे बाबूजी ।
मेरी शिक्षा के प्रति चिंतित समर्पित थे मेरे बाबूजी ।।
रामनवमी पर जन्मे मर्यादा पुरुष थे मेरे बाबूजी ।
स्नेह प्यार ममता भरे दिल के राजा थे मेरे बाबूजी ।।
घर समाज सबसे मान सम्मान आदर पाते थे मेरे बाबूजी ।
मेरे जीवन की पाठशाला के प्रथम गुरु थे मेरे बाबूजी ।।
पापा बनने पर मुझे लगा कितने अछे थे मेरे बाबूजी ।
जीवन यात्रा में पल पल याद आते मुझे मेरे बाबूजी ।।
छलकती आँखों से मैंने मुखग्नि दी जब चले गए मेरे बाबूजी ।            
शिक्षा संस्कार चरित्र की संपत्ति दे गए मुझे मेरे बाबूजी ।।
हर घर में पापा डैडी हैं पर नहीं हैं जैसे थे मेरे बाबूजी ।
प्रार्थना है अगले जन्म में पुनः मिलें मुझे मेरे बाबूजी ।। 
दिलीप भाटिया

बाबा 
मौन अडिग स्थिर रहकर
अपना फ़र्ज़ निभाता है
हाँ, तभी तो खड़ा हिमालय
बाबा की याद दिलाता है
गंभीर होकर भी चंचल
निच्छल जब वो बहता
है हाँ नदी ये ब्रह्मपुत्र
बाबा की याद दिलाता है
कड़ी ज़ुबान ताशीर मीठी
शीतल छाया देता है
हाँ नीम का पेड़ मुझे
बाबा की याद दिलाता है 
सुलोचना वर्मा



पिता की भूमिका माँ सम तुल्य
न समझे हर कोई इसका मूल्य
बालक जब रोता थपक कर सुला देती माँ
दूर से ही दिल में दुआ कर रह जाता पिता
उंगली पकड़ कर चलाये न चलाए
गोदी में बिठाकर बेशक लोरी न सुनाये
दर्द में बच्चे के शायद कभी आंसू न बहाए
पर हृदय पिता का हरदम ही बच्चो का भला चाहे
दिन रात मेहनत कर पसीना बहाए
पर थकन की शिकन माथे पर न दर्शाये
दिल नरम होता है उसका भी ,पर
ज़माने में पिता हरदम कठोर ही कहलाये
नमन करती हूँ इश्वर के इस स्वरुप को
माँ तो माँ है पर पिता बिन
जीवन भी जीवन नहीं कहलाये 
पूनम- -माटिया

Sunday, June 16, 2013

'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 2.

आज 'पिता दिवस' है |
सभी पिताओं से अनुरोध 
कि 
बच्चों के सही मार्गदर्शक बनकर 
उन्हें सही गलत के चयन में उनका साथ दें |
एवं 
सभी बच्चे अपने पिता के सही चुनाव 
को आज्ञापूर्वक स्वीकार करें |
' सभी को पितादिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ' 


 
मेरे पिता

माँ ने जो बेशुमार प्यार दिया,
पिता ने चुपचाप दुलार किया !
ऊँगली पकड़ जो चलना सिखाया,
तुतलाते बोलों ने अर्थ आपसे पाया !
पिता की डांट में छुपा था प्यार ,
जिसका न हो पाया कभी इजहार !
अन्दर से नरम और ऊपर से कठोर ,
अकेले बैठ हमेशा ही हुए भावविभोर !
बेटे बेटी का न कभी किया अंतर ,
चलते ही रहे बिना थके आप निरंतर !
माँ के माथे की बिंदिया का थे विश्वास ,
साथ हमेशा होने का दिलाया अहसास !
जब था अनजान सब दुनिया का नजारा ,
पिता के कन्धों पर बैठ देखा जग सारा !
जिंदगी के सफ़र का जब आपने विश्राम पाया ,
हमने कन्धों पर आपको मोक्षद्वार पहुँचाया !
पिता की छांव ने सिखाया खिलखिलाना ,
'सरिता' निरंतर बहना न व्यर्थ आँसू बहाना !! 

सरिता भाटिया

 
माँ धरा तो आकाश है पिता
व्योम-धरा पर संसार है पिता ।
नभ से भी ऊँचा प्यार है तेरा
सागर सा गंभीर मुस्कान है तेरा ।
माँ ने दिया यहाँ जनम हमें
तुमने सिखलाई जीने की कला ।
जीवन ऊर्जा हम तुमसे पाते
हर मुश्किल में मार्ग दिखाते ।
दुःख की साया पड़े न हम पर
नीलकंठ बन तुम दुःख पी जाते ।
जीवन की इस आपाधापी में
अडिग रहते तुम हिमालय सा ।

रंजना वर्मा

ग़ज़ल : शीर्षक पिता
बह्र :हजज मुसम्मन सालिम

घिरा जब भी अँधेरों में सही रस्ता दिखाते हैं ।
बढ़ा कर हाँथ वो अपना मुसीबत से बचाते हैं ।।
बड़ों को मान नारी को सदा सम्मान ही देना ।
पिता जी प्रेम से शिक्षा भरी बातें सिखाते हैं ।।
दिखावा झूठ धोखा जुर्म से दूरी सदा रखना ।
बुराई की हकीकत से मुझे अवगत कराते हैं ।।
सफ़र काटों भरा हो पर नहीं थकना नहीं रुकना ।
बिछेंगे फूल क़दमों में अगर चलते ही जाते हैं ।।
ख़ुशी के वास्ते मेरी दुआ हरपल करें रब से ।
जरा सी मांग पर सर्वस्व वो अपना लुटाते हैं ।।
मुसीबत में फँसा हो गर कोई बढ़कर मदद करना ।
वही इंसान हैं इंसान के जो काम आते हैं ।। 

अरुन शर्मा 'अनन्त'

Saturday, June 15, 2013

'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ :भाग 1.


दोस्तो आज से
''पिता''
पर स्वरचित रचनाएँ
'गुज़ारिश'
पर पोस्ट की जाएंगी
जैसे जैसे हमें प्राप्त हुई हैं
उसी क्रम में पोस्ट होंगी
सभी को अपना स्नेह देकर अनुग्रहीत करें |

पिता
पिता मील पत्थर
जो ,सचाई की राह बताते
पिता पहाड़
जो ,जिंदगी के उतार-चढ़ाव समझाते
पिता जोहरी
जो ,शिक्षा के हीरे तराशते
पिता दीवार
जो ,अपने पर भ्रूण -हत्या पाप लिखवाते
पिता पिंजरा
जो ,रिश्तों को जीवन भर पालते
पिता भगवान
जो ,पत्थर तराश पूजे जाते
पिता सूरज
जो ,देते यादों के उजाले
पिता हाथ
जो ,देते सदा शुभ आशीष
पिता दुआएँ
जो ,बिन उनके अब साथ मेरें
पिता आँसूं
जो ,अब मेरी आँखों में है बसे
संजय वर्मा "दृष्टि "

पिता
सरसी छंद
(१६,११, कुल २७मात्राए,पदांत में दीर्घ लघु )
चलते-चलते कभी न थकते,ऐसे होते पाँव!
पिता ही सभी को देते है,बरगद जैसी छाँव!!
परिश्रम करते रहते दिनभर,कभी न थकता हाथ!
कोई नही दे सकता कभी, पापा जैसा साथ!!
बच्चो के सुख-दुःख की खातिर,दिन देखें न रात!
हरदम तैयार खड़ें रहते,देने को सौगात!!
पिता नही है जिनके पूछे,उनके दिल का हाल!
नयन भीग जाते है उनके,हो जाते बेहाल!!
हमारे बीच में नही पिता,तब आया है ज्ञान!
हर पग पर आशीर्वाद मिले,चाहे हर संतान!!
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया

पिता
पिता दिखने में एक छोटा सा शब्द हे, लेकिन इसकी महिमा बहुत ही बड़ी हे ! आज हम जिसके बलबूते पर जी रहे हे और शान से यह कह रहे हे की आज मेरे पास सब कुछ हे वह सब पिता का ही दिया हुआ हे ! पिता ने हमें पाला-पोसा और इस काबिल बनाया की हम अपने पेरो पे खड़े हो सके ! वो हमारी जिंदगी के भगवान हे जितनी कीमत आज हमारी जिंदगी में माँ की हे उतनी ही कीमत पिता की हे ! खुद मेहनत करके, भूखे रहकर भी हमें पडाया –लिखाया और जिंदगी को जीना सिखाया ! मेरा तो बस यही कहना हे की बड़े होकर पिता के इस अहसान को भूल मत जाना !

पिता पर एक कविता

पिता जीवन हे, सबल हे, शक्ति हे
पिता सृष्टी के निर्माण की अभिव्यक्ति हे
पिता अंगुली पकडे बच्चे का सहारा हे
पिता कभी कुछ मीठा हे, तो कभी कुछ खारा हे
पिता पालन-पोषण हे, परिवार का अनुशासन हे
पिता रोटी हे, कपड़ा हे, मकान हे
पिता हे तो बच्चो का इंतजाम हे
पिता से परिवार में प्रतिपल राग हे
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग हे
पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति हे
पिता रक्त में दिए हुए संस्कारो की मूर्ति हे
पिता सुरक्षा हे अगर सिर पर हाथ हे
पिता नहीं तो बचपन अनाथ हे
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो
पिता का अपमान नहीं, अभिमान करो
क्योकि माँ बाप को कभी कोई बाँट नहीं सकता
ईश्वर भी इनके आशीर्वाद को काट नहीं सकता
ईश्वर में किसी भी देवता का स्थान दूजा हे
माँ बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा हे
विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा सब व्यर्थ हे
यदि बेटे के होते हुए माँ बाप असमर्थ हे
वो खुसनसीब होते हे जिनके माँ बाप इनके साथ होते हे
क्योकि माँ बाप के आशीर्वाद के हजारो हाथ होते हे !

दिल से ...........हितेश राठी

Friday, June 14, 2013

पिता जी को श्रद्धांजलि

आज 14 जून को मेरे पिता जी का जन्मदिवस है 
तो कुछ श्रद्दा सुमन मेरी तरफ से आज ही 
वैसे 
हम कल से पिता दिवस पर भेजी गई रचनाएँ 
'गुज़ारिश'
 पर आप सबके साथ साँझा करेंगे 
1.
थाम ऊँगली जो चलाये वो पिता होता है 
प्यार छुपा जो डांट से समझाए वो पिता होता है 
कंधे बिठा सारी दुनिया घुमाये वो पिता होता है
मोक्षद्वार हमारे ही कन्धों पर जाए वो पिता होता है
2.
बच्चों की आँखों में अपने सपने सजाये    
थाम ऊँगली जो चलाये वो पिता होता है   
मील पत्थर बन सच्ची राह जो दिखाए 
जोहरी बन भविष्य तराशे वो पिता होता है 

************


Monday, June 10, 2013

पर्यावरण दिवस

पर्यावरण दिवस पर एक रचना जो किसी कारणवश पोस्ट नहीं कर पाई 

इमारत का कद बढ़ता जाए 
पानी का स्तर घटता जाए 
हरियाली का दाव लगा है
चारों ओर ही सूखा पड़ा है

आओ सौर उर्जा बढाएं
बारिश का पानी बचाएं
हरियाली फिर वापिस लाएं
तभी पर्यावरण दिवस मनाएं

Wednesday, June 5, 2013

सूखे पर दोहे



धरती के चिथड़े हुए ,जल बिन सब बेजान |
खाली बर्तन ले सभी ,भटक रहे इन्सान ||

गर्मी से सूखा बढ़ा , जल की हाहाकार |
अफरा तफरी है मची ,प्यासे है नर नार ||

ताल भये सूखे सभी, पारा बढता जाय | 
खाली गागर ले फिरे, पानी नजर न आय ||



मिनरल वाटर कंपनी ,धार रूप विकराल |
पानी सारा ले उडी ,जन जन है बेहाल ||

Monday, June 3, 2013

विशेष सूचना

 ...आमन्त्रण...
पिता दिवस को समर्पित रचनाएँ 
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सभी दोस्तों से गुज़ारिश है कि वो 
'पिता दिवस'
पर  
समर्पित स्वरचित रचनाएँ  
हमें प्रेषित करें 
रचनाएँ 10 से 12 पंक्तिओं की होनी चाहिए 
प्राप्त सभी रचनाएँ ब्लॉग पर प्रकाशित की जाएंगी 
सर्वश्रेष्ठ 3 या 4 रचनाओं को  
'अंजुम पत्रिका' [जुलाई अंक] में  
एवं
'निर्झर टाइम्स' [साप्ताहिक] में 
प्रकाशित किया जाएगा और 
ब्लॉग प्रसारण के विशेष रचना कोना में स्थान दिया जाएगा 
रचनाओं का चयन वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा किया जाएगा
रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि 14 जून,2013 है    
रचनाएँ निम्न ईमेल पर प्रेषित करें 
saru.bhatia66@gmail.com 

Sunday, June 2, 2013

नित खैर मंगा [नुसरत फ़तेह अली खान]


तू मिलया ते मिल गई खुदाई वे 
हथ जोड़ आखां पाई न जुदाई वे 
मर जावांगी जे अख मैथो फेरी 
दुआ न कोई होर मंगदी