हमराही

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Thursday, February 21, 2013

''..महाकुंभ..''


महाकुंभ का देखो कैसा मेला
इलाहाबाद में दुनिया का रेला



कुंभ में संस्कृति की झलक देखो
थम जाएँ साँसें जो अपल्क देखो

हो कोई पूर्ववासी या पश्चिम से आया
संगम में जाकर सबने डुबकी लगाया

बढ़ी अद्भुत है यह अखाड़ों की दुनिया
अटल है यह अपने संस्कारों की दुनिया






कोई वस्त्र त्यागे,कोई नाख़ून बढ़ाए
कैसे कैसे बैठे हैं ये रूप अपनाए

शिव की जटाओं से गंगा जैसे बहती
इनकी जटाएँ क्या क्या कहानी कहती




इतने बढ़ जाएँ पाप जब धरती बोझिल हो जाए
पूरी धरती एक दिन कहीं ना गंगा में समा जाए


''महाकुंभ'' का मेला हर साल आना चाहिए
ऐसे ही सही धरती का बोझ तो हटाना चाहिए


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16 comments :

  1. कुम्भ का बढ़िया चित्र खींचा है आपने!

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  2. सरिता जी महाकुम्भ का बेहद सुन्दर वर्णन किया है, हार्दिक बधाई

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  3. रविकर जी धन्यवाद ,मेरी रचना को चर्चा मंच पर लाने के लिए

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  4. सरिता जी कुम्भ मेले की खूबसूरत तस्वीरों से सजी बढ़िया प्रस्तुति के लिए साधुवाद |
    आशा

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    1. नमस्कार आशा जी ,स्नेह बनाये रखें,शुक्रिया

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  5. वाकई ..महाकुम्भ अपने आप में एक पूरी दुनिया है..........सुन्दर विवरण !

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  6. महा कुम्भ का सजीव चित्रण

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  7. सुन्दर -सचित्र -जैसे सामने देख लिया हो !

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  8. महाकुम्भ का सुन्दर शब्द चित्र खींचा है ! तस्वीरें भी आकर्षक हैं ! घर बैठे इलाहाबाद के मेले की सैर करा दी आपने ! आभार आपका !

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  9. कुम्भ को शब्दों के माध्यम से सजीव कर दिया. बहुत खूब.
    सादर
    नीरज 'नीर'
    www.kavineeraj.blogspot.com

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  10. महाकुम्‍भ की इस सचित्र प्रस्‍तुति के लिये बहुत - बहुत आभार

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  11. महाकुम्भ का सुन्दर शब्द चित्र खींचा है . बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.

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