दोस्तो आज से
''पिता''
पर स्वरचित रचनाएँ
'गुज़ारिश'
पर पोस्ट की जाएंगी
जैसे जैसे हमें प्राप्त हुई हैं
उसी क्रम में पोस्ट होंगी
सभी को अपना स्नेह देकर अनुग्रहीत करें |
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पिता
पिता मील पत्थर
जो ,सचाई की राह बताते
पिता पहाड़
जो ,जिंदगी के उतार-चढ़ाव समझाते
पिता जोहरी
जो ,शिक्षा के हीरे तराशते
पिता दीवार
जो ,अपने पर भ्रूण -हत्या पाप लिखवाते
पिता पिंजरा
जो ,रिश्तों को जीवन भर पालते
पिता भगवान
जो ,पत्थर तराश पूजे जाते
पिता सूरज
जो ,देते यादों के उजाले
पिता हाथ
जो ,देते सदा शुभ आशीष
पिता दुआएँ
जो ,बिन उनके अब साथ मेरें
पिता आँसूं
जो ,अब मेरी आँखों में है बसे
संजय वर्मा "दृष्टि "
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पिता
सरसी छंद
(१६,११, कुल २७मात्राए,पदांत में दीर्घ लघु )
चलते-चलते कभी न थकते,ऐसे होते पाँव!
पिता ही सभी को देते है,बरगद जैसी छाँव!!
परिश्रम करते रहते दिनभर,कभी न थकता हाथ!
कोई नही दे सकता कभी, पापा जैसा साथ!!
बच्चो के सुख-दुःख की खातिर,दिन देखें न रात!
हरदम तैयार खड़ें रहते,देने को सौगात!!
पिता नही है जिनके पूछे,उनके दिल का हाल!
नयन भीग जाते है उनके,हो जाते बेहाल!!
हमारे बीच में नही पिता,तब आया है ज्ञान!
हर पग पर आशीर्वाद मिले,चाहे हर संतान!!
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
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पिता
पिता दिखने में एक छोटा सा शब्द हे, लेकिन इसकी महिमा बहुत ही बड़ी हे ! आज हम जिसके बलबूते पर जी रहे हे और शान से यह कह रहे हे की आज मेरे पास सब कुछ हे वह सब पिता का ही दिया हुआ हे ! पिता ने हमें पाला-पोसा और इस काबिल बनाया की हम अपने पेरो पे खड़े हो सके ! वो हमारी जिंदगी के भगवान हे जितनी कीमत आज हमारी जिंदगी में माँ की हे उतनी ही कीमत पिता की हे ! खुद मेहनत करके, भूखे रहकर भी हमें पडाया –लिखाया और जिंदगी को जीना सिखाया ! मेरा तो बस यही कहना हे की बड़े होकर पिता के इस अहसान को भूल मत जाना !
पिता पर एक कविता पिता जीवन हे, सबल हे, शक्ति हे
पिता सृष्टी के निर्माण की अभिव्यक्ति हे
पिता अंगुली पकडे बच्चे का सहारा हे
पिता कभी कुछ मीठा हे, तो कभी कुछ खारा हे
पिता पालन-पोषण हे, परिवार का अनुशासन हे
पिता रोटी हे, कपड़ा हे, मकान हे
पिता हे तो बच्चो का इंतजाम हे
पिता से परिवार में प्रतिपल राग हे
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग हे
पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति हे
पिता रक्त में दिए हुए संस्कारो की मूर्ति हे
पिता सुरक्षा हे अगर सिर पर हाथ हे
पिता नहीं तो बचपन अनाथ हे
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो
पिता का अपमान नहीं, अभिमान करो
क्योकि माँ बाप को कभी कोई बाँट नहीं सकता
ईश्वर भी इनके आशीर्वाद को काट नहीं सकता
ईश्वर में किसी भी देवता का स्थान दूजा हे
माँ बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा हे
विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा सब व्यर्थ हे
यदि बेटे के होते हुए माँ बाप असमर्थ हे
वो खुसनसीब होते हे जिनके माँ बाप इनके साथ होते हे
क्योकि माँ बाप के आशीर्वाद के हजारो हाथ होते हे !
दिल से ...........हितेश राठी
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हमराही
Saturday, June 15, 2013
'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ :भाग 1.
लेबल:
पिता
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