मुखौटे पर मुखौटा चढाए बैठे हैं सब
जाने असली चेहरा नजर आएगा कब
दुनिया हो गई है पाखंडी और चोर
घर में कुछ और है बाहर कुछ और
घर में मुखौटा उतारकर दूसरा चढाते हैं
अपने आप को गुणी और सभ्य बताते हैं
सोचते हैं पहचान छुपा लेंगे इसे पहन कर
खुद को खुद से ही अनजान बनाये बैठे हैं