जब से हुआ है बे तार तार ओझल
मन है मेरा कुछ बोझिल
मुझे भी तो एक तार मिला था
मेरा सबसे पहला और आखिरी तार
मैंने रखा है उसे आज तक संभाल
क्योंकि उसमें था मेरे पिता का प्यार
जो चले गए बैकुंठ हमें छोड़
शायद इसीलिए मैं हूँ आत्मविभोर
आज निकाल डाली सब पुरानी पाती
जिसमें रखा था वोह तार
मेरे पिता का प्यार
यह वोही टेलीग्राम है जो मेरे पिता जी ने मुझे बटाला [पंजाब] से भेजा था जुलाई 1987 में जोकि पिता जी के एक शिष्य पृथीपाल सिंह ने भेजा था ,जब मेरा बी एड का परिणाम आया था क्योंकि तब में दिल्ली में थी |
अब नहीं होगा यह कभी किसी के साथ
क्योंकि 160 वर्षीय होकर मिला है उसे विराम
जिसे कहते थे कभी हम टेलीग्राम
जो शुरू हुई थी 1863 में
और अंतिम सांस ली 14 जुलाई ,2013 को
मैं चूक गई
किसी अपने को ना भेज पाई तार
जो हो जाती समय के साथ इतिहास
फिर चाहे कोई उडाता मेरा परिहास
आज की तकनीक के आगे
हमने छोड़ा है पीछे उस प्यारे तार को
कभी सांसें आती थीं जिससे दूर संचार को
अब भावी पीढ़ी के लिए
नहीं होगी इसकी अहमियत ख़ास
क्योंकि उनको नहीं है इससे कोई आस
अब बारहवीं के सिलेबस में इसे नहीं सिखाया जायेगा
अब ईमेल ,मैसेंजर ,व्हाट्स एप्प समझाया जाएगा
क्योंकि तकनीक ने अब कर लिया है बहुत विस्तार
अब दूर संचार में बे तार हो गया है तार
अलविदा तार! अलविदा तार! अलविदा तार !