मुख्यपृष्ठ
मेरा परिचय
मेरे ब्लॉग
गुज़ारिश
आधारशिला
मेरी सच्ची बात
ॐ प्रीतम साक्षात्कार ॐ
मेरी रचनाएँ
दुर्गा
सपने
आइना
अहसास
दिले नादान
नज्म एवं नगमें
वीडिओ
अन्य
छंद
गजल
हाइकु
उत्सव
शुभकामनाएँ
हमराही
सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!
Tuesday, July 2, 2013
दोहे [बरखा]
जल बिन सब बेजान हैं ,धरती कहे पुकार
बरखा देखो आ गई ,लेकर सुखद फुहार
घाव धरा के भर गए , ग्रीष्म हो गया लुप्त
जल फैला चहुँ ओर है ,धरा हो गई तृप्त
बरखा ले कर आ गई , राहत और सुकून
दिल्ली भी अब बन गई ,देख देहरादून
Post A Comment Using..
Blogger
Google+
No comments :
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)