हमराही

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Wednesday, July 3, 2013

कुण्डलिया [बरखा]


बरखा छम छम आ गई ,लेकर सुखद फुहार 
सावन के झूले पड़े ,कोयल करे पुकार 
कोयल करे पुकार ,सबहीं का चित चुराए 
मीठे मीठे आम ,सभी के मन को भाए
सखि ना झूला सोहि , ना ही चले अब चरखा
आए अभी सजन न, आ गई है रुत बरखा   

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