खेला करती थी कुदरत
यहाँ खुले मैदान में
इंटों के जंगल खड़े हैं
आज उसी मैदान में
बस कुछ लालच की खातिर
कर दी उसकी शांति भंग
आलिशान मकान तो हैं
दिल में है कितना दंभ
खेल कुछ ऐसा रचा कि
मैदान वापिस पा लिया
जो कुछ भी था तेरा
तुझको है लौटा दिया
समझ जा ओ मूर्ख बन्दे
सुधार ले अपने ढंग
मत कर दोहन उसका
रुक जा ओ इन्सान
कुदरत खेलेगी फिर लीला
कर देगी सब श्मशान
उसका उसको लौटा दे
वृक्षारोपण कर हरियाली ला
छोड़ दे झूठे लालच बन्दे
अपने जीवन में खुशहाली ला
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