चित्र से काव्य तक छंदोत्सव
चलो उठो मनुज अब ,निद्रा अभी तुम त्यागो
जाग जाएंगे सब ,स्वयं तो पहले जागो
नदिया पेड़ पहाड़ ,करें ना तेरी मेरी
रखो इसे संभाल , सब हैं धरोहर तेरी
लगे तुम्हें क्यों डर , देख जो बदरा जागे
स्वयं बुलाया प्रलय , स्वयं ही इससे भागे
शोर मचा चहुँ ओर , तुम भी हाथ बंटाओ
बढ़ी ग्लोब वार्मिंग , धरती अपनी बचाओ
नन्हे नन्हे हाथ , धरा को जब थामेंगे
माँ का आंचल थाम , स्नेह से सब मांगेंगे
धरा है माँ समान, करना ना वैर इससे
हुई अगर यह रुष्ट ,खैर मांगोगे किससे
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