क्या जानें कल इस आधुनिकता के युग में पाती भी तार की तरह आखिरी साँस ले रही हो इसलिए यादों को याद करते हुए ' प्रेम की पाती '
यश जी के जन्मदिवस 3 सितम्बर पर सप्रेम भेंट
अलमारी के एक कोने में
मिली वो प्रेम की 'पाती'
जब नही था फोन कोई
इसी से हमारे तुम्हारे
बीच कुछ बात हो पाती
क्या था जुनून तब
नहीं आज तक समझ पाती
वो अलग अलग
भाषा का प्रयोग
वो भिन्न भिन्न
स्टाइल में लिखना
कभी उल्टी भाषा,
कभी घुमावदार तरीका अपनाना
जिसे पढ़ते पढ़ते
आपको चक्कर आ जाना
और ख़यालों में इस बात को
सोचकर हमारा मुस्कराना
हमारा पहुँचाना आप तक
वो प्रेम की पाती
जो आप तक
पहुँचने से पहले
देवर के हाथ लग जाती
जो माँगता आपसे
प्रेम की रिश्वत
फिर वो आप तक पहुँच पाती
वो मेरी प्रेम की पाती
जिसमें होता कुछ दिनों,
कुछ घंटों,कुछ पलों का हिसाब
जो गुज़रे आप के साथ लाजवाब
वो लम्हे,वो पल,जो गुज़रे आप बिन
जिनका पल पल का हिसाब
ना लिख पाती मैं गिन गिन
वो याद फिर दिला गई
वो गुजरा जमाना
वो थी कोई परी कथा
या था कोई अफ़साना
बहुत मुश्किल है
इन यादों को भुलाना
इन लम्हों को भुलाना
..........सरिता
यश जी के जन्मदिवस 3 सितम्बर पर सप्रेम भेंट
अलमारी के एक कोने में
मिली वो प्रेम की 'पाती'
जब नही था फोन कोई
इसी से हमारे तुम्हारे
बीच कुछ बात हो पाती
क्या था जुनून तब
नहीं आज तक समझ पाती
वो अलग अलग
भाषा का प्रयोग
वो भिन्न भिन्न
स्टाइल में लिखना
कभी उल्टी भाषा,
कभी घुमावदार तरीका अपनाना
जिसे पढ़ते पढ़ते
आपको चक्कर आ जाना
और ख़यालों में इस बात को
सोचकर हमारा मुस्कराना
हमारा पहुँचाना आप तक
वो प्रेम की पाती
जो आप तक
पहुँचने से पहले
देवर के हाथ लग जाती
जो माँगता आपसे
प्रेम की रिश्वत
फिर वो आप तक पहुँच पाती
वो मेरी प्रेम की पाती
जिसमें होता कुछ दिनों,
कुछ घंटों,कुछ पलों का हिसाब
जो गुज़रे आप के साथ लाजवाब
वो लम्हे,वो पल,जो गुज़रे आप बिन
जिनका पल पल का हिसाब
ना लिख पाती मैं गिन गिन
वो याद फिर दिला गई
वो गुजरा जमाना
वो थी कोई परी कथा
या था कोई अफ़साना
बहुत मुश्किल है
इन यादों को भुलाना
इन लम्हों को भुलाना
..........सरिता