हमराही

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Thursday, November 7, 2013

लगा अब दांव पर परिवार का सम्मान है

1 2 2 2   1 2 2 2   1 2 2 2   1 2 

लबों से आज गायब हो गई मुस्कान है 
अजब सी अब परेशानी लिए इन्सान है / 

कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेगा चैन तब
दुखों का अंत होगा तब यही अनुमान है /

गिले शिकवे यूँ अब हावी हुए रिश्तों पे हैं  
लगा अब दांव पर परिवार का सम्मान है /

किसे अपना कहें किसको पराया हम कहें 
यहाँ हर चेहरे की अब छुपी पहचान है /

रचे हैं साजिशें गहरी मगर अब सोचते 
जफ़ा पाकर खुदी का डोलता ईमान है  /

जमाना लाख समझाए नहीं सुधरेंगे ये 
नहीं मजहब सिखाता यूँ लुटाना आन है /

चले आओ हमारे पास ढलती शाम में 
हमें घर आज फिर से ही दिखे अनजान है /

तुम्हारे साथ ही गुजरी हमारी जिंदगी 
सनम है आज भी बसती तुम्हीं में जान है /

वफ़ा  सरिता निभाई है हमेशा साथ दे 
जतन तुम भी करो मुश्किल नहीं आसान है  //

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