हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Friday, January 24, 2014

मजदूर [दोहावली]

ओ बी ओ छंदोत्सव में प्रस्तुत दोहे


दिन भर पत्थर तोड़ती, कहलाती मजदूर 
पेट साथ है क्या करे, भूख करे मजबूर 

ऊपर सूरज तापता ,,अंतर तापे पेट 
पानी पी करती गुजर, मिले बहुत कम रेट 

माह जेठ आषाढ में ,पत्थर गिट्टे तोड़
आग बुझेगी पेट की, पाई पाई जोड़ 

कलम बना है फावड़ा,स्याही तन की ओस
लेखन करती रोज है नहीं कहीं अफ़सोस 

जीना इनको देख के , टूटे ना विश्वास 
श्रम साहस ही श्रमिक के,आभूषण हैं ख़ास 

कुटुम्भ को है पालना, मंहगाई अपार 
बनी नार मजदूर है, नहीं हुई लाचार 

पत्थर पर है ढासना, बोतल से ले नीर 
गिट्टे तसला फावड़ा, कहें ह्रदय की पीर 

माथे पे बिंदी रची ,किया सभी शृंगार 
श्रम से पाले पेट को, नहीं मानती हार  

चढ़ी दोपहर जेठ की ,गला रहा है सूख 
अभी घूँट दो तीन पी,मिटी प्यास औ' भूख 

बोतल पानी की लिए, सने धूल से हाथ
बाकी करना काम है, साथी का दे साथ  

अबला नारी को कहें , उनको मूरख जान 
घर का बोझा ढो रही, श्रम उसकी पहचान 
............
Post A Comment Using..

No comments :