शांत माहौल
आँख मिचौली खेलता
बादलों के पीछे छिपा चाँद
जिसे निहारते हुए
एकाएक खुशबु लिए
एक हवा का झोंका
तुम्हारे स्पर्श सा
छू गया मुझे
पूस की वो रात
कभी इस करवट
कभी उस करवट
ह्रदय में हुआ कंपन
आँखों से छलका प्रेम
भिगो गया
मेरा तन बदन
मेरा मन
तन्हा गुजारते हुए
पूस की वो रात
तुम्हारी छूअन से
पूस की वो रात
आत्मीय हो उठती
खिल उठती मैं
खुल जाते
सब ह्रदय के द्वार
दिल
चहकता
बहकता
मचलता
पूस की वो रात
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वो छूअन अब कभी नहीं होगी महसूस ....