हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Saturday, February 1, 2014

पूस की वो रात


ठिठुरते हुए तारे 
शांत माहौल 
आँख मिचौली खेलता  
बादलों के पीछे छिपा चाँद 
जिसे निहारते हुए
एकाएक खुशबु लिए 
एक हवा का झोंका 
तुम्हारे स्पर्श सा
छू गया मुझे 
पूस की वो रात  

लेटते हुए 
कभी इस करवट 
कभी उस करवट 
ह्रदय में हुआ कंपन 
आँखों से छलका प्रेम 
भिगो गया
मेरा तन बदन   
मेरा मन  
तन्हा गुजारते हुए 
पूस की वो रात

तुम्हारी छूअन से  
पूस की वो रात 
आत्मीय हो उठती 
खिल उठती मैं 
खुल जाते 
सब ह्रदय के द्वार 
दिल 
चहकता 
बहकता 
मचलता 
पूस की वो रात 
__________________________________

वो छूअन अब कभी नहीं होगी महसूस ....
Post A Comment Using..

No comments :