शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत
पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत
ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार
पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार
रात सुहानी हो गई, उजली है अब भोर
डाली डाली फूल हैं ,हरियाली चहुँ ओर
निर्मल अम्बर है हुआ, पाया धरा निखार
जर्रे जर्रे में बसा , कुदरत में है प्यार
रंग बिरंगी तितलियाँ , मन में भरें उमंग
प्यार हिलोरें ले रहा , अब प्रीतम के संग
पेड़ आम के बौर से, इतरायें हैं आज
मन को है भाने लगी, कोयल की आवाज
नव पल्लव का पालना, झुला रहे सब पेड़
खुशियाँ चारो ओर हैं, चिन्ता दिए खदेड़
गेहूँ की हैं बालियाँ, खिलती जौ के संग
कुसुमाकर है आ गया, मन में बजे तरंग
सरस्वती को पूज के, बढे बुद्धि औ' ज्ञान
स्मरण शक्ति भी तीव्र हो पा विद्या वरदान
शुक्ल माघ की पंचमी, भरे ह्रदय उल्लास
संयम सच औ' शील से ,मिले स्नेह विश्वास
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