कुछ कम रोशन है रोशनी तुम बिन
बरसात कम है गीली तुम बिन
हवाओं में खुश्बू नहीं है तुम बिन
चाँद की कम है चाँदनी तुम बिन
सूरज करे ना उजाला तुम बिन
घर बन गया मकान है तुम बिन
भंवरे नही हैं गुनगुनाते तुम बिन
थम सा गया है वक्त तुम बिन
पर मेरी हर ख्वाहिश है तुम से
पर अब भी हर सांस में बसे हो तुम
हर धड़कन में आवाज़ है तुम्हारी
हर पल जैसे छू जाते हो दिल को
हर आहट में अहसास है तुम्हारा
पीछे से आकर
आँखें बंद करते हो
और पूछते हो ,
कौन हूँ मैं?
तुम वोही हो,
जिसके होने से
चाँद की चाँदनी,
हवाओं की खुश्बू
सूरज का उजाला,
भंवरों का गुंजन,
घर का अहसास
और
सबसे ऊपर
जिसके होने से
मैं हूँ, ,पगले !
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