मेरे अस्तित्व को निघलती हुई
तेरी पिरामिडों सी चुप्पी
दफ़न कर खुद में अनेकों जवाब
कर गई मुझे
तुझसे यूँ अलग
बाँटकर तुझे खुशियाँ मुझे गम
खींचते हुए मर्यादाओं की एक महीन लकीर
हमारे बीच
जिसे ना लाँघने का हमारा प्रयास
बना ना जाये हमें भी
बेजान
इन पिरामिडों की मानिंद ....
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