हमराही

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Saturday, May 9, 2015

तेरी चुप्पी


मेरे अस्तित्व को निघलती हुई 
तेरी पिरामिडों सी चुप्पी 
दफ़न कर खुद में अनेकों जवाब 
कर गई मुझे 
तुझसे यूँ अलग 
बाँटकर तुझे खुशियाँ मुझे गम 
खींचते हुए मर्यादाओं की एक महीन लकीर 
हमारे बीच 
जिसे ना लाँघने का हमारा प्रयास 
बना ना जाये हमें भी 
बेजान 
इन पिरामिडों की मानिंद ....
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