बन कान्हा की बाँसुरी, अधरों को लूँ चूम
रस पी कान्हा प्यार का ,नशे संग लूँ झूम ।।
ऐसा तेरी प्रीत का ,नशा चढ़ा चितचोर
अधर चूम के बाँसुरी ,करे ख़ुशी से शोर ।।
बन कान्हा की बाँसुरी, खुद पर कर लूँ नाज
जन्म सफल होगा तभी ,छू लूँ उसकोआज ।।
नशा चढ़ा तेरी प्रीत का,नाचूँ झूमूँ आज
कान्हा तेरी प्रीत की ,धुन से छेड़ूँ साज ।।
कान्हा तेरी बाँसुरी,बोले मीठे बोल
खुश हो नाचें गोपियाँ , बजते ताशे ढोल ।।
लाती कान्हा बाँसुरी ,मुखमंडल पर शान
तड़प रही है स्पर्श बिन,भूली सब सुध आज ।
ओंठ लगी जो बाँसुरी ,खुला मोह का राज ।।
सहता पीड़ा बाँस है ,बाँटे प्रेम अथाह
राधा ,मीरा, गोपियाँ ,चाहें तेरी चाह ||
सफल हुई है बाँसुरी ,खुद पर करती नाज
अमर मान लो हो गई ,छूकर तुमको आज ।।
ओंठ चूम कर बाँसुरी ,इतराती है आज
धुन पर कान्हा प्रीत की ,छेड़ेगी वो साज ।।
बाँस बाँसुरी का कहे ,करो ह्रदय में छेद
लेकिन अपनी प्रीत का ,दे दो कान्हा भेद ।।
छूकर तुझको बाँसुरी ,बाँटे प्रीत अथाह
पशु पक्षी औ गोप सब तकते तेरी राह ||
धुन तेरी पर बाँसुरी ,छेड़े ऐसी तान
मगन रहें सब मोह में, नहीं करें अभिमान||
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