हमराही

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Monday, September 14, 2015

यादें [मुक्तक]


लफ़्ज मेरे हैं भीग गए जब यादें बरसी सारी रात 
शहर तेरे भी आती होगी यादों वाली यह बरसात 
नव पल्लव सी मुस्काती थी शाखाएं जो तेरे संग 
सूखे पत्तों सी बिखरी हैं पाकर यादों का आघात ।
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