नेकियों के लिबास से ,ढक लो बदन तुम अपना
भगवान के घर कपड़ों की दुकान नहीं है
रूह बदलती है यहाँ रोज घरौंदा
उसका कोई अपना मकान नहीं है |
मिट्टी से बने और मिट्टी में ही जा मिले
मिट्टी से अलग अपनी पहचान नहीं है
रूह ए परिंदा उड़ जायेगा एक दिन
इस बात से अब कोई भी अनजान नहीं है |
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