पर्यूषण दोहे
पर्यूषण का पर्व है ,रोज भजो नवकार |
अंतरमन को शुद्ध कर ,होंगे दूर विकार ||
महामंत्र नवकार है ,सुनना सुबह शाम |
सबसे अच्छे पर्व का, पर्यूषण है नाम ||
आठ दिनों तक जैन सब , करते हैं उपवास |
देता है शुभ प्रेरणा ,सदा भाद्रपद मास ||
'अटाई' के पर्व में ,करें नित्य उपवास |
पूजा औ आराधना , नित्य कर्म हैं ख़ास ||
हरना सबकी पीर को, तुम नाथों के नाथ |
मनोकामना पूर्ण हो ,सब की पार्श्वनाथ ||
अपराधी को माफ़ कर ,बनना सदा उदार |
दंड,वैर सब छोड़कर , मन का करो सुधार ||
क्षमापना का दिवस है , करो वैर का अन्त |
दिल को रखना साफ़ तुम,कह गए साधु संत ||
आत्मा अपनी शुद्ध कर, छोड़ो द्वेष,असत्य |
सर्व धर्म समभाव का ,कथन तभी हो सत्य ||
संयम चिंतन नित्य कर ,औ' निर्जल उपवास
तन मन अपना शुद्ध कर ,आया है दिन खास ||
जीयो जीने दो सदा ,अगर मनुज हो आप
अहिंसा है परम धरम , हिंसा केवल पाप ||