जानती हूँ
याद है उसे
बीते हुए लम्हे
बस छोड़ दी है उसने मेरी चिंता
चंद कर्तव्यों की खातिर
हर लम्हा कभी बयाँ करता था वो
मुझे अपना कहकर
कर गया है पराया आज
जब से कुछ भी बयाँ करना
लगता है उसे कहानी
क्यों रहती है मुझे
उसकी चिंता अब भी
हर दिन
हर पल
हर लम्हा
कभी कभी मन सोचता है
क्यों नहीं बदलती मैं भी
समय की धारा के साथ
लोगों की सोच के साथ
मैं ऐसी क्यों हूँ ??
......................
याद है उसे
बीते हुए लम्हे
बस छोड़ दी है उसने मेरी चिंता
चंद कर्तव्यों की खातिर
हर लम्हा कभी बयाँ करता था वो
मुझे अपना कहकर
कर गया है पराया आज
जब से कुछ भी बयाँ करना
लगता है उसे कहानी
क्यों रहती है मुझे
उसकी चिंता अब भी
हर दिन
हर पल
हर लम्हा
कभी कभी मन सोचता है
क्यों नहीं बदलती मैं भी
समय की धारा के साथ
लोगों की सोच के साथ
मैं ऐसी क्यों हूँ ??
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