रूप शैलपुत्री धरो ,मात विराजो आज।
मन से करते अर्चना , पूरण करना काज।।
प्रथम दिवस नवरात्र का ,आश्विन का है मास ।
तन मन निर्मल नित करो,शुरू हुए उपवास।।
माँ दुर्गा का दूसरा, ब्रह्मचारिणी रूप।
फूल चढ़ा अर्चन करो , लिए साथ में धूप।।
निर्मल चित से ध्यान कर ,लो चरणों की धूल।
सभी दुआयें आपकी, मैया करे कुबूल।।
दुर्गा जी का तीसरा , उज्ज्वल हैअवतार।
अर्ध चंद्र माथे सजा,घंटे काआकार।।
दमक रही माँ चमक से ,अद्भुत माँ का रूप।
मुक्त रखे हर कष्ट से ,माँ का शांति स्वरुप।।
करो शक्ति आराधना,शोक रोग हों नष्ट।।
कूष्माण्डा देवी हरे ,सब जीवन के कष्ट।
बुरे विचारों का सदा ,करो मनुज उपवास।
अच्छाई की होड़ कर,बनना माँ का दास।।
दुर्गा जी का तीसरा , उज्ज्वल हैअवतार।
अर्ध चंद्र माथे सजा,घंटे काआकार।।
दमक रही माँ चमक से ,अद्भुत माँ का रूप।
मुक्त रखे हर कष्ट से ,माँ का शांति स्वरुप।।
करो शक्ति आराधना,शोक रोग हों नष्ट।।
कूष्माण्डा देवी हरे ,सब जीवन के कष्ट।
बुरे विचारों का सदा ,करो मनुज उपवास।
अच्छाई की होड़ कर,बनना माँ का दास।।