भाग 1.
पंचम दुर्गा रूप को ,कहें स्कन्ध की मात।
मोक्ष द्वार होता सुलभ,दर्शन जब हो जात।।
मानव चोला है कठिन ,करना नहीं ग़ुरूर।
उपासना माँ की करो,यश बल मिले जरूर।।
छठा रूप कात्यायनी ,करो प्रेम से भक्ति।
रोग द्वेष को नष्ट कर ,देती है माँ शक्ति।।
माँ के शक्ति रूप का,करो ह्रदय से ध्यान।
मनोकामना पूर्ण हो ,मिले मान सम्मान।।
कालरात्रि माँ सातवीं ,करे काल का नाश।
फलित होय शुभ साधना,भय का होय विनाश।।
रंग बिरंगी चुनरियाँ ,सजा हुआ दरबार।
वैर भाव को छोड़कर ,पा लो माँ का प्यार।|
संभव होते कार्य सब,जब पहुँचें माँ ठौर।।
माँ चरणों में बैठकर ,शुरू किये उपवास।
देना आशीर्वाद माँ ,आया तेरा दास।।
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