मुझे पिता नही , एक भगवान मिला है,
जीता जागता एक वरदान मिला है,
ऊँगली पकड़कर जिसकी,
चलना है सिखा हमने,
जिन्दगी जीने की समझ ,
सीखी है जिनसे हमने ,
आकाश से भी ऊँचा है कद जिनका,
गहराई है बातो में उनकी,
अश्क न आने दिए आँखों में मेरी ,
परवरिश इतने प्यार से की है,
हर दर्द को समेट कर अपने आगोश में,
खुशियों से भर दी है जिन्दगी मेरी,
ऐसे पिता को शत शत नमन करता हूँ ,
ऐसे कई जनम भी उनकी सेवा को अर्पण करता हूँ,
डॉ. शौर्य मलिक
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ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू
छोड़ इस लोक को ऐ बाबुल
परलोक में अब रहता है तू
कैसे बताऊं तुझको ऐ बाबुल
मेरे मन में अब बसता है तू
बन गए हैं सब अपने पराये
न होकर कितना खलता है तू
देख माँ की अब सूनी कलाई
आँखों से निर्झर बहता है तू
पुकारे तुझको ‘मन’ साँझ सवेरे
मंदिर में दिया बन जलता है तू
ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू....
ऐ बाबुल बहुत याद आता है तू..... !!
सु..मन
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क्या करूँ समर्पित
पितृ दिवस पर
क्या लिखूँ, क्या करूँ समर्पित
कैसे दूँ शब्द भावों को मन के
मात्र बचपन की कुछ यादें नहीं तुम
कैशोर्य का लड़कपन, यौवन का मार्गदर्शन हो .
हर कदम पर साथ चले जो
ऐसी घनेरी, स्नेहल छाया हो तुम
हाँ, मेरे अपने वृक्ष हो तुम
हर ताप-संताप स्वयं सह
अपनी अमृत धारा से सरसाते
हाँ मेरे अपने बादल हो तुम
बचपन से अब तक , हर कदम पे
स्थिरता दे क़दमों को मुझे संभाला
निर्भय हो जिस पर पग रखती
हाँ, मेरे अपने धरातल हो तुम
क्या लिखूँ, कैसे कुछ शब्दों में
बखान करूँ तुम्हारा
क्या करूँ समर्पित
पितृ दिवस पर
शालिनी रस्तोगी
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हमराही
Wednesday, June 19, 2013
'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 5.
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पिता
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