ऊँगली पकड़ा कर उसने कहा ,
चल तुझे दुनिया की राह बताऊँ,
धीरे धीरे लडखडाते हुए इन,
नन्हे क़दमों को आगे बढाऊँ,
तू थक जाये या रुक जाए ,
तो मेरी छावं में सो जाना ,
मैं तेरा साया हूँ अभी
मीलों तक है तेरे संग जाना,
मैंने तुझे जनम न दिया,
ऐसी कोई बात नहीं ,
पर तुझमे मेरा लहू है ,
हर क्षण बात साथ रही,
आँचल माँ का नहीं पर,
स्नेह से गला भर आता है,
जो वक्त मेरे पास है ,
रोजीरोटी में निकल जाता है,
दिन भर की थकान लिए,
जब मैं घर आता हूँ ,
तेरी इक मुस्कान को देख,
दुनिया भूल जाता हूँ ,
यही सोचता हूँ हर पल ,
एक दिन तू गर्व बने मेरा ,
तेरे नाम से मेरा नाम होगा ,
तू भी सोच लेना तेरी परवरिश,
के बदले में ये मेरा इनाम होगा |
मंजूषा पांडे
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पित्र वर्ग के प्रथम प्रतिनिधि,परम पूज्य पिता जी हैं।
भरद्वाज ग्वालियर
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आज... भी तू मेरे साथ है...पापा
देखता हूँ जब अपने बच्चोँ को
थामेँ हुऐ उंगली मेरी
बहुत याद आती है मुझे पापा तेरी
तेरे कान्धे पे बैठ देखता था दुनिया
तेरी बाहोँ मेँ खुद को पाता था निर्भय
वो बचपन के दिन भी अज़ब दिन थे पापा
कुछ भी ना जब मेरी समझ मेँ था आता
मेरी ही भाषा मेँ तू मुझ को था समझाता
दुनिया का अच्छा बुरा मुझे तू बताता
अपने दर्द को तूने छूपाया सभी से
मेरे लिये ना जाने तू कितनी रातोँ को जागा
तेरे दम पे बड़ा हो गया मैँ
अपने ही पांव पे खड़ा हो गया मैँ
तेरे ही आदर्शोँ पे चला जा रहा हूँ
जो तुझ से सीखा वो बच्चोँ को समझा रहा हूँ
तुझ को नमन बहुत मेरे पापा
आज भी हर कदम तू मेरे साथ है पापा
अशोक अरोरा
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हमराही
Thursday, June 20, 2013
'पिता' पर स्वरचित रचनाएँ : भाग 6.
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पिता
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