हमराही

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Monday, June 9, 2014

मजदूर [कुण्डलिया]

मजदूरी कर पालता अपना वो परिवार 
रोज दिहाड़ी वो करे देखे ना दिन वार  |
देखे ना दिन वार नहीं देखे बीमारी
कैसे पाले पेट वार है इक इक भारी   
मंहगाई की मार ,यही उसकी मज़बूरी  
गेंहू चावल दाल मिले जो हो मजदूरी  ||

उसका जीवन है बना दर्द भूख औ प्यास 
मजदूरी किस्मत बनी जब तक तन में श्वास |
जब तक तन में श्वास पड़ेगा उसको सहना 
तसला धूल कुदाल पसीना उसका गहना 
सरिता पूछे आज कहो कसूर है किसका
भूखा है मजदूर पेट भरे कौन उसका ||
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