हमराही

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Monday, February 27, 2012

''क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?''

माना की हर स्त्री इस संसार रूपी रंगमंच के
कई पात्रों को अभिनीत करती है उसमें भी वो
इस पुरुष प्रधान समाज को संतुष्ट नही कर
पाती और उसकी व्यथा एक कठपुतली की तरह
सामने आती है ,जिसके साथ मैंने न्याय करने
की कोशिश की है, आप सब दोस्तों के विचार
इस के लिए खुले मन से आमंत्रित हैं....

कठपुतली...काठ की पुतली बिना भावों के
क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?
हाड़ मास का शरीर बनाकर,
उसमें एक मन भी बसाया !
क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?
मन में एक अजनबी बसाकर,
क्यों तूने नहीं उससे मिलाया !
क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?
मन में सुन्दर भाव जगाकर,
रोना हँसना सब ही सिखाया !
क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?
कभी माँ, कभी बाप,कभी भाई,
कभी पति ने मनचाहा नचाया !
क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?
मन के भावों से समझौता कर लिया,
जो चाहा वो कभी ना पाया !
क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?
खुले आकाश में स्वछ्न्द मैं विचरूँ,
ऐसा अहसास कभी हो ना पाया !
क्यों तूने मुझे कठपुतली बनाया?
कभी घर कभी समाज की चिंता,
मुझे पूछने कोई ना आया ! 
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3 comments :

  1. bahut sunder tulnatmak chitran

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  2. उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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